ुअगर आप जबलपुर कैंसर हॉस्पिटल के एक दावे पर यकीन करें तो अब पुरुषों में भी स्तन कैंसर की शिकायतें मिल रही हैं। अकेले महाकौशल में अब तक 10 ऐसे सनसनीखेज मामले सामने आए हैं। हाल ही में सतना के एक ऐसे ही पीड़ित युवक का प्रकरण सामने आने के बाद इसके कारणों पर बहस शुरू हो गई है। चिकित्सा विशेषज्ञों की राय में आमतौर तीस साल की उम्र के पार ऐसे पुरुष जिनका वजन औसत से ज्यादा है और जो किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं उनमें स्तन कैंसर की आशंका कई गुना बढ़ जाती है? उधर इंडियन स्टेटिक्स इंस्टीट्यूट कोलकाता का एक रिसर्च तो और भी भयावह है। तंबाकू का सेवन सामान्य इंसानों के जीन्स को बदल रहा है। डीएनए में आ रहे इस बदलाव का जेनेटिक प्रभाव क्या पीड़ित की आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ेगा? फिलहाल यह तय होना बाकी है। आज दुनिया विश्व तंबाकू निषेध दिवस मना रही है मगर इन नाटकीय औपचारिकताओं का आखिर अर्थ क्या है? ताकीद के तौर पर भयावह आंकड़ों की बानगी के बड़े-बड़े इश्तहार और दो-चार वर्कशॉप करके हमारी सरकारें आदतन हर साल अपना फर्ज पूरा कर लेती हैं। कहने को तो भारत सरकार अकेले ध्रूमपान के निषेध पर सालाना लगभग 27 हजार करोड़ रुपए खर्च करती है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे दुनिया के 10 देशों की तरह हमारे भी देश में भी सार्वजनिक स्थलों पर ध्रूमपान सख्ती के साथ प्रतिबंधित है। इसी मामले में भारत सरकार ने जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (एफसीटीसी)पर दस्तखत किए हैं ,वहीं 11 वीं पंचवर्षीय योजना के तहत साढ़े चार सौ करोड़ के शुरूआती बजट पर राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कानून (एनटीसीपी)भी लागू है ,मगर बावजूद इसके अभी भी तंबाकू के कारण देश में हर साल तकरीबन 8 लाख लोगों की मौते हो रही हैं और कुल कैंसर पीड़ितों में से 90 फीसदी मुख कैंसर के शिकार हैं । आखिर, क्यों ? वस्तुत: इस मामले में सरकार की नीयत कभी भी ठीक नहीं रही है। भारत सरकार ने कभी भी तंबाकू और उसके उत्पादों के उत्पादन और बिक्री को हतोत्साहित करने की ईमानदार कोशिशें नहीं की हैं। अलबत्ता अक्सर टैक्स बढ़ाकर इसकी स्मलिंग के ही रास्ते आसान किए गए हैं। सरकार पर टुबैको लॉबी का दबाव जगजाहिर है। सालाना 40 हजार करोड़ के मुनाफेवाले इस तंबाकू उद्योग पर सरकार की मेहरबानी का एक और चेहरा यह भी है कि आज चीन और ब्राजील के बाद भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादक देश है। इतना ही नहीं देश में प्रतिवर्ष तंबाकू के उत्पादन में लगभग 25 लाख टन का इजाफ ा हो रहा है और इसके रकबे में हर साल लगभग 9 हजार हेक्टेयर की वृद्धि हो रही है। सिगरेटवाली तंबाकू का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के किसान तो इस खेती से इस कदर मालामाल हैं कि उन्होंने परंपरागत खेती से तौबा कर ली है। इस मसले पर किसी भी मुनाफाखोर सरकार से आस लगाना बेमानी है। हमें यह समझना ही होगा कि नशा कैसा भी हो वह सेहत,आयु,धन,चैन,चरित्र और आत्मबल का नाश करता है। यह फिक्र सरकार को नहीं, अंतत: हमें ही करनी होगी?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें