खबर है कि भारतीय रिजर्व बैंक के भोपाल स्थित क्षेत्रीय मुख्यालय ने तकरीबन तीन लाख के दो हजार नकली नोट पुलिस को सौंपे हैं। आरबीआई को यह जाली करेंसी पांच माह के अंदर राजधानी समेत राज्य के विभिन्न बैंकों से मिली है। आरबीआई की इस औपचारिकता को पुलिस ने दर्ज कर लिया है। कुछ दिनों बाद पुलिस खात्मा लगा कर फाइल बंद कर देगी। जाली करेंसी जैसे अत्यंत संवेदनशील मामले में भारतीय रिजर्व बैंक और पुलिस के बीच सालाना होने वाली यह सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन सीधे भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े इस मसले का दूसरा पहलू बेहद खतरनाक और शर्मनाक है। यदि हम नायक कमेटी की रिपोर्ट पर गौर करें तो मौजूदा समय में 169 हजार करोड़ रुपए मूल्य के नकली नोट भारतीय बाजार में प्रचलन में हैं। एक आधिकारिक अनुमान के अनुसार हर एक हजार में से दस नोट जाली हैं। भारतीय रिजर्व बैंक से लेकर राष्ट्रीय और प्राइवेट सेक्टर तक के बैंकों के कोष नकली नोटों से मालामाल हैं।
एटीएम जाली करेंसी उगल रहे हैं। असली-नकली नोट बताने वाली मशीनें भी नकली को असली बता रही हैं। आम आदमी की तो छोड़िए, विशेषज्ञों के लिए भी यह तय कर पाना असंभव हो रहा है कि उनके हाथ में जो नोट है, वह असली है या फिर जाली। डायरेक्टर ऑफ रेवन्यू इंटेलिजेंस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईबी, सीबीआई, वित्त मंत्रलय और सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो भी लाचार हैं। देश की शीर्ष खुफिया जांच एजेंसियां अब यह धारणा बनाकर घर बैठ चुकी हैं कि नकली नोटों की खेप सरहद पार से आती है और नेपाल का काठमांडू तथा बांग्लादेश का ढाका इसके ट्रांजिट पाइंट हैं। यह भी सच है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को असंतुलित करने के लिए नकली नोटों की सप्लाई के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है, लेकिन सिर्फ इतना ही सोच कर बैठ जाने से बात बनने वाली नहीं है। हमें इससे भी आगे उन यूरोपीय आधारों पर भी गौर करना होगा, जो जाली करेंसी छापने के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं।
यहां गौरतलब तथ्य यह भी है कि चाहे हमारी शीर्ष जांच एजेंसियां हों या पुलिस और या फिर बैंक नकली नोटों की बरामदगी के मामले में किसी की भी भूमिका व्यावहारिक नहीं है। सबके सब गैरजिम्मेदार हैं। मसलन-सौ का नकली नोट यदि किसी भी आम आदमी के हाथ लगता है, तो वह इस भय के कारण हाय-तौबा नहीं मचाता कि कहीं वह फंस न जाए। नकली नोट जिसके हाथ में मिला वही अपराधी है, जैसी धारणा के कारण प्राय: जाली करेंसी गलाने वाले लोग बच जाते हैं। नकली नोट चाहे बैंक से कैश में मिले या एटीएम उगले। हर कोई इसकी जिम्मेदारी लेने से बचता है। देश में नकली नोटों का मायावी जंजाल इस कदर हावी है कि लोग पांच सौ और हजार के नोट के लेन-देन के वक्त इस बात को लेकर भयभीत रहते हैं कि कहीं, उनका नोट नकली न निकल जाए। सच तो यह है कि जब तक हमारी जांच एजेंसियां जाली करेंसी के असली यूरोपीय आधारों तक नहीं पहुंचती हैं, तब तक हमें इस भारी संकट से निजात मिलने वाली नहीं है।
एटीएम जाली करेंसी उगल रहे हैं। असली-नकली नोट बताने वाली मशीनें भी नकली को असली बता रही हैं। आम आदमी की तो छोड़िए, विशेषज्ञों के लिए भी यह तय कर पाना असंभव हो रहा है कि उनके हाथ में जो नोट है, वह असली है या फिर जाली। डायरेक्टर ऑफ रेवन्यू इंटेलिजेंस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईबी, सीबीआई, वित्त मंत्रलय और सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो भी लाचार हैं। देश की शीर्ष खुफिया जांच एजेंसियां अब यह धारणा बनाकर घर बैठ चुकी हैं कि नकली नोटों की खेप सरहद पार से आती है और नेपाल का काठमांडू तथा बांग्लादेश का ढाका इसके ट्रांजिट पाइंट हैं। यह भी सच है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को असंतुलित करने के लिए नकली नोटों की सप्लाई के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है, लेकिन सिर्फ इतना ही सोच कर बैठ जाने से बात बनने वाली नहीं है। हमें इससे भी आगे उन यूरोपीय आधारों पर भी गौर करना होगा, जो जाली करेंसी छापने के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं।
यहां गौरतलब तथ्य यह भी है कि चाहे हमारी शीर्ष जांच एजेंसियां हों या पुलिस और या फिर बैंक नकली नोटों की बरामदगी के मामले में किसी की भी भूमिका व्यावहारिक नहीं है। सबके सब गैरजिम्मेदार हैं। मसलन-सौ का नकली नोट यदि किसी भी आम आदमी के हाथ लगता है, तो वह इस भय के कारण हाय-तौबा नहीं मचाता कि कहीं वह फंस न जाए। नकली नोट जिसके हाथ में मिला वही अपराधी है, जैसी धारणा के कारण प्राय: जाली करेंसी गलाने वाले लोग बच जाते हैं। नकली नोट चाहे बैंक से कैश में मिले या एटीएम उगले। हर कोई इसकी जिम्मेदारी लेने से बचता है। देश में नकली नोटों का मायावी जंजाल इस कदर हावी है कि लोग पांच सौ और हजार के नोट के लेन-देन के वक्त इस बात को लेकर भयभीत रहते हैं कि कहीं, उनका नोट नकली न निकल जाए। सच तो यह है कि जब तक हमारी जांच एजेंसियां जाली करेंसी के असली यूरोपीय आधारों तक नहीं पहुंचती हैं, तब तक हमें इस भारी संकट से निजात मिलने वाली नहीं है।
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