शनिवार, 7 मई 2011

एक और विभाजन की भूमिका


यूपी में विधान सभा चुनाव से थोड़ा सा पहले सक्रिय कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश के पार्टी प्रभारी दिग्विजय सिंह ने पृथक बुंदेलखंड प्रांत की बात उठा कर यूपी-एमपी के बीच बारीक विभाजन की एक नई भूमिका तैयार कर दी है। नए और छोटे राज्यों के हिमायती इसे अंतरराज्यीय पुनर्गठन की संज्ञा देकर नई इबारत लिखने का तर्क भी दे सकते हैं। बुंदेलखंड राज्य की मांग कोई नई बात नहीं है। सवाल यह है कि मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों से मिलकर बने इस निर्धन अंचल की बुनियादी जरूरतें क्या हैं? बांदा में कांग्रेस के प्रिंस राहुल गांधी की मौजूदगी में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सूखे फूल लेकर मिलने पहुंचे ग्रामीणों ने कहा कि हमें 73 सौ करोड़ का पैकेज नहीं चाहिए। पैकेज तो नेता-अफसर पचा जाते हैं। हम भूखे-प्यासे हैं। हमें दाना-पानी चाहिए। सवाल यह भी है कि क्या स्वतंत्र राज्य के दज्रे की यह मांग स्थानीय है?या फिर इसका प्रायोजन महज सियासी है।
खनिज-वन संपदा से बेहद निर्धन इस बदनसीब अंचल को यदि हम वाकई नए राज्य का दर्जा दिलाना ही चाहते हैं तो हमें विकास मूलक पैमाने की कसौटी परखना होगा। यह भी देखना होगा कि 1999 में एनडीए सरकार के जमाने में वजूद में आए छत्तीसगढ़,उत्तरांचल और झारखंड जैसे राज्यों में विकास के सवाल पर जमीनी स्तर पर क्या कोई क्रांतिकारी बदलाव आया है? बेशक , छोटे राज्य बुनियादी विकास का आधार होते हैं। देश में जब-तब 18 से भी ज्यादा नए राज्यों के समर्थन में आंदोलन होते रहे हैं । यह भी सच है कि नए राज्यों की मांग के तर्को को खारिज नहीं किया जा सकता है। 121 करोड़ की आबादी वाले 28 राज्यों के इस देश की कुल जनसंख्या विश्व की कुल आबादी का तकरीबन 17 प्रतिशत है। जबकि दुनिया की कुल आबादी के 5 प्रतिशत जनसंख्या वाले अमेरिका में राज्यों की संख्या 60 है, लेकिन नए राज्यों के मामले में हम कितने गंभीर हैं? और हमने राज्य पुनर्गठनआयोग की क्या हालत बना रखी है,यह भी किसी से छिपा नहीं है। नए राज्यों से यदि अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं तो इसका आशय यह कि राज्यों के पुनर्गठन में सिर्फ विकास का मानक हमारा आधार नहीं रहा है। जाति -राजनीति के आधार पर वजूद में आए राज्यों से हम और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं। वर्ना, छोटे राज्य के वही पिटे-पिटाए फायदे हाथ लगेंगे। मसलन- जो कभी निगम का चुनाव नहीं जीते उन्हें माननीय बनने का मौका मिल जाएगा। अफसरों को बड़े कैडर की कमाईवाली कुर्सियां मिल जाएंगी। सड़क पर लाल -पीली बत्तियों की बाढ़ आ जाएगी। नई राजधानी वाले शहर की रातोंरात शान बढ़ जाएगी। जमीनों के दाम आसमान चूमने से बिल्डर चांदी काटने लगेंगे। नई-नई योजनाओं के लिए भारी भरकम बजट आते ही सियासतदारों के रिश्तेदार ठेकेदार बन जाएंगे। नई महंगी कारों के शोरूम । होटल-रेस्तरां,पब-बार में रोशन रातों का धंधा दमकने लगेगा। छोटे से राज्य की छोटी सी विधानसभा में कोई निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री बन जाएगा। चंद विधायक जब चाहें सरकार बनाए -बिगाड़ेंगे। जनता के लिए जनता के द्वारा जनता की सरकार के एस नए राज्य में आम आदमी को कुछ नहीं मिलेगा।

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