सनसनी खेज खुलासों के लिए मशहूर विकिलीक्स भारतीय कानून के सामने आखिर किस हद तक टिक सकता है? अदालती फैसलों की बुनियाद वस्तुत: साक्ष्यों पर टिकी होती है । क्या विकिलीक्स के साक्ष्य वैधानिक स्तर पर स्वयं के सत्यापन की दम रखते हैं? विधि विशेषज्ञों के बीच ऐसे सवालों पर मंथन स्वाभाविक है। सवाल यह भी है कि अगर विकिलीक्स के आरोपों का कानून की नजर में वाकई कोई मूल्य नहीं है, तो भारतीय मीडिया को सिर्फ सनसनी बेचने से बाज आना चाहिए। मीडिया को अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए पहले यह तय करना चाहिए कि क्या विकिलीक्स के दस्तावेज कानूनी की कसौटी पर खरे उतर सकते हैं? या फिर ऐसे खुलासे महज सियासी मसला हैं। यदि ऐसा ही है, तो इससे देश का भला नहीं है। देश में आम सरोकार से जुड़े अहम मसलों का अकाल नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विकिलीक्स के खुलासे कुछ और नहीं सिर्फ ओरिजनल केबलों की कॉपी हैं,विधि विशेषज्ञों की राय में कोर्ट में कोई भी दस्तावेज तब तक कार्यवाही योग्य नहीं होता है,जब तक उसका सत्यापन संभव नहीं हो। बहुचर्चित बोफोर्स कांड का अंजाम हमारे सामने है।
फिहहाल यह कहना मुमकिन नहीं कि उसके खुलासे बेदम और दस्तावेज झूठ का पुलिंदा ही हैं, लेकिन आरोपों का वैधानिक सत्यापन जरा संदिग्ध लगता है। ऐसे में अफवाहों के साथ सच्चइयों का बाजार तो गर्मा सकता है, लेकिन नतीजा शिफर ही रहेगा। अमेरिका समेत समूची दुनिया की शीर्ष सत्ता के लिए सिरदर्द बन चुके विकिलीक्स के संस्थापक जुलियन असांजे आज विश्व मीडिया के सिर माथे पर हैं। बेशक उनके साहस को दाद मिलनी चाहिए, लेकिन उनकी इस साहसिक मुहिम की अतिरंजना और अंधानुकरण से पहले हमें हमारी जिम्मेदारियों को भी पूरी शिद्दत के साथ समझना चाहिए। मीडिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि विकिलीक्स ने ढाईलाख से भी ज्यादा जो गोपनीय दस्तावेज न्यूर्याक टाइम्स को सौंपे हैं ,उनमें से तीन हजार से भी ज्यादा नईदिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से संबंधित हैं।
ऐसे मे मीडिया को इन दस्तावेजों के सत्यापन से पहले ही सार्वजनिक मान्यता देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। देश की एकता,अखंडता और संप्रभुता के सवाल पर विचार करते हुए उसे अपने मूल दायित्वों को समझना ही होगा। दुनिया जानती है कि विकिलीक्स के संस्थापक जुलियन असांजे साफ्टवेयर प्रोटेक्शन सिस्टम को समझने और तोड़ने में माहिर हैं और आज वह मीडिया की बदौलत ही एक एक्टिविस्ट कंप्यूटर हैकर के रूप में खुद को स्थापित करने में कामयाब रहे हैं, लेकिन भारतीय कानून के तहत किसी पर इल्जाम लगाने के लिए सिर्फ इतनी पात्रता पर्याप्त नहीं है। अदालत को सत्यापित साक्ष्य चाहिए । एक अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण के दौरान नासा का कंप्यूटर हैक कर सनसनी फैला चुका यह शख्स भारतीय कानून के सामने आखिर किस हद तक टिक सकता है? अंतत: इस सवाल पर विचार होना ही चाहिए।
फिहहाल यह कहना मुमकिन नहीं कि उसके खुलासे बेदम और दस्तावेज झूठ का पुलिंदा ही हैं, लेकिन आरोपों का वैधानिक सत्यापन जरा संदिग्ध लगता है। ऐसे में अफवाहों के साथ सच्चइयों का बाजार तो गर्मा सकता है, लेकिन नतीजा शिफर ही रहेगा। अमेरिका समेत समूची दुनिया की शीर्ष सत्ता के लिए सिरदर्द बन चुके विकिलीक्स के संस्थापक जुलियन असांजे आज विश्व मीडिया के सिर माथे पर हैं। बेशक उनके साहस को दाद मिलनी चाहिए, लेकिन उनकी इस साहसिक मुहिम की अतिरंजना और अंधानुकरण से पहले हमें हमारी जिम्मेदारियों को भी पूरी शिद्दत के साथ समझना चाहिए। मीडिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि विकिलीक्स ने ढाईलाख से भी ज्यादा जो गोपनीय दस्तावेज न्यूर्याक टाइम्स को सौंपे हैं ,उनमें से तीन हजार से भी ज्यादा नईदिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से संबंधित हैं।
ऐसे मे मीडिया को इन दस्तावेजों के सत्यापन से पहले ही सार्वजनिक मान्यता देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। देश की एकता,अखंडता और संप्रभुता के सवाल पर विचार करते हुए उसे अपने मूल दायित्वों को समझना ही होगा। दुनिया जानती है कि विकिलीक्स के संस्थापक जुलियन असांजे साफ्टवेयर प्रोटेक्शन सिस्टम को समझने और तोड़ने में माहिर हैं और आज वह मीडिया की बदौलत ही एक एक्टिविस्ट कंप्यूटर हैकर के रूप में खुद को स्थापित करने में कामयाब रहे हैं, लेकिन भारतीय कानून के तहत किसी पर इल्जाम लगाने के लिए सिर्फ इतनी पात्रता पर्याप्त नहीं है। अदालत को सत्यापित साक्ष्य चाहिए । एक अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण के दौरान नासा का कंप्यूटर हैक कर सनसनी फैला चुका यह शख्स भारतीय कानून के सामने आखिर किस हद तक टिक सकता है? अंतत: इस सवाल पर विचार होना ही चाहिए।
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