पहले आतंक के आका ओसामा की मौत और फिर कराची के मेहरान एयर बेस पर तहरीक-ए-तालिबान के आत्मघाती आतंकियों का अटैक। घबराहट,तिलमिलाहट और छटपटाहट से पस्त पड़ोसी पाकिस्तान अकेले भारत और दक्षिण एशिया की फिक्र नहीं अपितु पूरी दुनिया के लिए परेशानी का सबब बन चुका है। ओसामा के खात्मे के बाद पाकिस्तान पर यह बीसवां और अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है। विश्व विनाश के नाजुक मसले पर तो यह हमला कई सनसनीखेज और संवेदनशील सामरिक सवाल खड़े करता है। आखिर आतंकवादी पाक की नौसेना पर ही निशाना क्यों साध रहे हैं? क्या ये हमले ओसामा के एवज में इंतकाम का नतीजा हैं या फिर पाकिस्तान में भीतर ही भीतर अब तालिबान इतना मजबूत हो चुका है कि वह पाक के परमाणु हथियारों को हासिल करने की कोशिश में हैं? कहीं बदले हालातों में अमेरिका की नजर पाकिस्तान के परमाणु अस्त्रों पर तो नहीं है? क्या आतंकवादियों के चंगुल में फंसे इस दरिद्र देश पर विश्वबिरादरी अब निशस्त्रीकरण का दबाव बनाने में कामयाब रहेगी?16 घंटे तक आतंकियों के कब्जे में रहा कराची का मेहरान एयरबेस सिर्फ पाकिस्तान के लिए ही नहीं वरन सामरिक लिहाज से पूरी दुनिया के लिए अहम सैन्य ठिकाना है। यह वही सैन्य ठिकाना है जहां कभी भारत के खिलाफ समंदर से आसमान की निगरानी के लिए पाक नौसेना की वायु विंग का गठन किया गया था। कालांतर में अमेरिका ने इसे वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ अभियान के नाम पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इसी ठिकाने से अब तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में तैनात नाटो के सुरक्षा बल को रसद पहुंचाया जाता है। संभवत: इन्हीं सब कारणों से पाक की नौसेना आतंकियों के निशाने पर है। पाकिस्तान की तीनों सेनाओं के इस गढ़ पर तालिबानी कब्जे के दौरान जिस तरह से पाकी फौज बेबस दिखी उससे आतंकियों का हौसला बढ़ा है और इसी के साथ ही दुनिया की यह फिक्र भी बढ़ी है कि कहीं पाक के परमाणु हथियार इन आताताइयों के हाथ न लग जाएं? पहले जापान-अमेरिका और अब चीन के साथ अपने परमाणु कार्यक्र मों में पाकिस्तान जिस तरह से व्यस्त है उससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि वह एक दशक के दौरान दुनिया का चौथा सबसे बड़ा परमाणु शस्त्र संपन्न देश हो जाएगा। तेजी के साथ तबाही की ओर बढ़ रहे पाकिस्तान पर अगर वक्त रहते निशस्त्रीकरण का वैश्विक दबाव नहीं बनाया गया तो हालात बेकाबू हो जाएंगे , यह भी तकरीबन तय है कि पाकिस्तान में अपने परामाणु हथियारों की सुरक्षा कर पाने की शक्ति नहीं है। वैसे भी दुनिया के लिए अशांति आज सबसे बड़ी चुनौती है। विश्व शांति सूचकांक-2011 की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 153 में से 29 देशों के आतंकवादी हमलों की आशंका हमेशा बनी रहती है। इस मामले में भारत जैसा शांतिप्रिय देश 153 वें नंबर पर है। क्या इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की यह रिपोर्ट हमारी आंखें खोलने के लिए काफी नहीं?
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