देश में समर्थन मूल्य पर गेहूं की बंफर खरीदी में व्यस्त सरकारी तंत्र के पास फिलहाल अतीत की बर्बादी से सबक लेने का वक्त नहीं है। उर्पाजन केंद्रों पर गेहूं की आवक अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है और इस बीच यह फिक्र भी गहराई है कि आखिर इस रिकार्ड तोड़ खरीदी के सुरक्षित भंडारण की गारंटी क्या होगी? हमारे पास सुरक्षित स्टोरेज का ना तो कोई भरोसेमंद विकल्प है और ना ही इस सिलसिले में वैकल्पिक इंतजाम सूझ रहे हैं। सरकारी दावे के मुताबिक अब तक खरीदे गए लगभग सवा 27 लाख मीट्रिक टन गेहूं में से साढ़े 16 लाख मीट्रिक टन गेहूं का गोदामों में सुरक्षित भंडारण हो चुका है। गोदामों में लगभग 5 हजार मीट्रिक टन अनाज का स्टॉक पहले से मौजूद है।
मतलब, स्टोरेज अभी से फुल हैं। ऐसी सूरत में राज्य सरकार ने मंडी बोर्ड और भंडार गृह निगम को अतिरिक्त तौर पर स्टोरेज के लिए पॉलीथिन कैप्स बनाए जाने के निर्देश दिए हैं, लेकिन कैप्स स्टोरेज का यह वही फार्मूला है, जो पिछले साल पूरी तरह से फेल हो गया था। एक अनुमान के अनुसार तब तकरीबन 5 करोड़ रूपए मूल्य का गेहूं बारिश की वजह से बर्बाद हो गया था। इस साल भी गेहूं को सहेजने के पुख्ता प्रबंध नहीं होने से अनाज की भारी तबाही तय मानी जा रही है। यह कैसी अराजकता है कि बंफर उत्पादन और उस पर अनाज की उतनी ही बर्बादी के बीच आम आदमी भुखमरी का शिकार है। कुपोषण तो जैसे मध्यप्रदेश के गरीब बच्चों की नियति बन कर रह गई है। अंतरराष्ट्रीय संस्था चाइल्ड राइटस एंड यू के एक ताजा सव्रे के मुताबिक राज्य के 10 जिलों के 60 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। प्रदेश के आदिवासी बहुल्य इलाकों में तो 74 प्रतिशत बच्चों का यही पीड़ा है। देश में प्रमुख खाद्यान्न गेहूं की बर्बादी का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि हर साल 60 लाख टन गेहूं चूहे खा जाते हैं। यह खुराक 10 करोड़ बच्चों के लिए एक साल के लिए पर्याप्त है। देश में खाद्यान्न की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट कई बार अपनी चिंता जता चुका है,जबकि सर्वोच्च अदालत की मंशा अनुकरणीय है। इसमें हर्ज नहीं कि अनाज को बर्बादी से बेहतर है कि उसे गरीबों में बांट दिया जाए, लेकिन इस फिक्र से बेपरवाह केंद्र सरकार का रवैया जैसे का तैसा है। इस बीच मध्यप्रदेश सरकार ने केंद्र के सामने ओपन मार्केट में गेहूं बेच देने का अच्छा सुझाव रखा है। इससे नई फसल के गेहूं को न केवल बचाया जा सकता है बल्कि आम उपभोक्ताओं की जरूरतों को सहजता से पूरा किया जा सकता है। भारत दुनिया का अगर दूसरा बड़ा गेहूं उत्पादक देश है तो विश्व में चीन के बाद वह गेहूं का दूसरा बड़ा उपभोक्ता भी है । मध्यप्रदेश में भी इसकी बंफर पैदावर जग जाहिर है। प्रति हेक्टेयर पर यहां 1625 किलो गेहूं के उत्पादन का अनुमान है लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि आम आदमी बावजूद इसके दाने-दाने को मोहताज है। इसमें शक नहीं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दिए गए अल्पकालिक उपायों को वरीयता के आधार पर अपनाते हुए अनाज को जरूरत मंद गरीबों के बीच मुफ्त वितरित करने की अविलंब व्यवस्था करनी चाहिए। ओपन मार्के ट के मुकाबले यह एक आदरणीय पहल हो सकती है।
मतलब, स्टोरेज अभी से फुल हैं। ऐसी सूरत में राज्य सरकार ने मंडी बोर्ड और भंडार गृह निगम को अतिरिक्त तौर पर स्टोरेज के लिए पॉलीथिन कैप्स बनाए जाने के निर्देश दिए हैं, लेकिन कैप्स स्टोरेज का यह वही फार्मूला है, जो पिछले साल पूरी तरह से फेल हो गया था। एक अनुमान के अनुसार तब तकरीबन 5 करोड़ रूपए मूल्य का गेहूं बारिश की वजह से बर्बाद हो गया था। इस साल भी गेहूं को सहेजने के पुख्ता प्रबंध नहीं होने से अनाज की भारी तबाही तय मानी जा रही है। यह कैसी अराजकता है कि बंफर उत्पादन और उस पर अनाज की उतनी ही बर्बादी के बीच आम आदमी भुखमरी का शिकार है। कुपोषण तो जैसे मध्यप्रदेश के गरीब बच्चों की नियति बन कर रह गई है। अंतरराष्ट्रीय संस्था चाइल्ड राइटस एंड यू के एक ताजा सव्रे के मुताबिक राज्य के 10 जिलों के 60 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। प्रदेश के आदिवासी बहुल्य इलाकों में तो 74 प्रतिशत बच्चों का यही पीड़ा है। देश में प्रमुख खाद्यान्न गेहूं की बर्बादी का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि हर साल 60 लाख टन गेहूं चूहे खा जाते हैं। यह खुराक 10 करोड़ बच्चों के लिए एक साल के लिए पर्याप्त है। देश में खाद्यान्न की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट कई बार अपनी चिंता जता चुका है,जबकि सर्वोच्च अदालत की मंशा अनुकरणीय है। इसमें हर्ज नहीं कि अनाज को बर्बादी से बेहतर है कि उसे गरीबों में बांट दिया जाए, लेकिन इस फिक्र से बेपरवाह केंद्र सरकार का रवैया जैसे का तैसा है। इस बीच मध्यप्रदेश सरकार ने केंद्र के सामने ओपन मार्केट में गेहूं बेच देने का अच्छा सुझाव रखा है। इससे नई फसल के गेहूं को न केवल बचाया जा सकता है बल्कि आम उपभोक्ताओं की जरूरतों को सहजता से पूरा किया जा सकता है। भारत दुनिया का अगर दूसरा बड़ा गेहूं उत्पादक देश है तो विश्व में चीन के बाद वह गेहूं का दूसरा बड़ा उपभोक्ता भी है । मध्यप्रदेश में भी इसकी बंफर पैदावर जग जाहिर है। प्रति हेक्टेयर पर यहां 1625 किलो गेहूं के उत्पादन का अनुमान है लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि आम आदमी बावजूद इसके दाने-दाने को मोहताज है। इसमें शक नहीं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दिए गए अल्पकालिक उपायों को वरीयता के आधार पर अपनाते हुए अनाज को जरूरत मंद गरीबों के बीच मुफ्त वितरित करने की अविलंब व्यवस्था करनी चाहिए। ओपन मार्के ट के मुकाबले यह एक आदरणीय पहल हो सकती है।
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