शनिवार, 14 मई 2011

साध्वी की सियासी शिगूफेबाजी


माले गांव बम ब्लास्ट और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी की हत्या के संगीन आरोपों का सामना कर रहीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की इस बौखलाहट का मतलब क्या है? कभी वह जोशी की हत्या में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का हाथ बताती हैं! तो कभी इस वारदात के पीछे उन्हें 26/11के मुंबई हमलों में शहीद हो चुके एटीएस चीफ हेमंत करकरे का हाथ लगता है। बकौल प्रज्ञा उन्हें यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के इशारे पर साजिशन फंसाया गया है। प्रदेश की भाजपा सरकार तो उन्हें फू टी आंख भी नहीं सुहा रही है। जोशी मर्डर मिस्ट्री में यह पहला मौका है ,जब साध्वी सार्वजनिक तौर पर इस कदर मुखर हुई हैं। उधर साध्वी के इन आक्रामक तेवरों के जवाब में बयानवीर दिग्गीराजा ने रहस्यमयी खामोशी ओढ़ ली है। उनकी इस खामोशी के अपने राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं। यह भी हैरतंगेज है कि इस सियासी शिगूफेबाजी को मीडिया से उतनी हवा नहीं मिली , जितनी की साध्वी को उम्मीद रही होगी। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को अभी भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) पर पूरा भरोसा है। यह वही एनआईए है, जिससे अब जोशी हत्याकांड की नए सिरे से एक और जांच कराने में मध्यप्रदेश सरकार को कोई दिलचस्पी नहीं है। आधिकारिक तौर पर राज्य शासन, केंद्रीय गृहमंत्रलय से पहले ही दो टूक कह चुका है कि मामला अब कोर्ट में है और इस मसले की अब और किसी जांच का कोई औचित्य नहीं है। बावजूद इसके साध्वी का एनआईए पर भरोसा तमाम तरह के अंदेशों को जन्म देता है। संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी की हत्या में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की भूमिका के सवाल पर राज्य की भाजपा सरकार पहले ही अपनी इतनी लानत-मलानत करा चुकी है कि अब वह किसी और फसाद में फंसना नहीं चाहती है। संभव है, राज्य सरकार की किनाराकसी का यह अप्रत्याशित रवैया साध्वी की बौखलाहट की मुख्य वजह हो। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह से साध्वी की अदावत कोई नई बात नहीं है। मुंबई हमले में शहीद एटीएस चीफ हेमंत करकरे की शहादत के मामले में हिंदू आतंकवाद पर दिग्गीराजा का बहुविवादित बयान रहा हो या फिर प्रज्ञा की गिरफ्तारी के फौरन बाद भाजपा के दो शीर्ष नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात पर जवाब तलब। दिग्गी और साध्वी अक्सर एक-दूसरे के निशाने पर रहे हैं। सरसरी तौर पर प्रज्ञा की यह मुखर बयानबाजी उनकी बौखलाहट का ही नतीजा लगती है। उनके तमाम आरोपों में तथ्यों का अभाव है। सोनिया -शरद के तार इस मामले में कहीं से नहीं जुड़ते हैं। सुनील जोशी की हत्या के अर्सा बाद इस मामले से दिग्विजय सिंह की लाइन मिलाने का तुक भी समझ से परे है। यही वजह है कि साध्वी मध्यप्रदेश के सियासी गलियारों में अपने आक्रामक तेवरों के बाद भी कोई गर्माहट नहीं पैदा कर पाईं। संभवत : आदतन सनसनीखेज मीडिया को भी इसमें कोई खास रस नहीं समझ में आया। सच तो यह है कि अति महात्वाकांक्षी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अब खुद को अलग-थलग और उपेक्षित महसूस करने के कारण अवसाद में हैं। उन्हें उपचार की जरूरत है।

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