पाक अधिकृत कश्मीर की 778 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा पर मिसाइलों के साथ चीनी सैनिकों की जमावट के बाद भी भारत सरकार के गृह मंत्रलय को अपने सैन्य अफसरों के बजाय चीन की झूठी बयान बाजियों पर भरोसा है। देश की एकता,अखंडता और संप्रभुता जैसे बेहद नाजुक और संवेदनशील मामले पर ऐसी बेरुखी बेहद निंदनीय है। हमारे दो परंपरागत पड़ोसी दुश्मनों के बीच बढ़ती दोस्ती के बाद भी अगर हम इस मसले पर चीन पर भरोसा करते हैं, तो ऐसी कूटनीति फिलहाल समझ से परे है। नार्दन क मांड के चीफ लेफ्टीनेंट जनरल केटी नाइक पहले ही इस आशय का सनसनीखेज खुलासा कर चुके हैं कि सरहद पर पाक की मदद से चीन मिसाइलों के साथ भारी तादाद में सैनिकों की तैनाती कर रहा है। जनरल की इस आशंका के बाद भी कि हमें एक साथ दो ताकतवर दुश्मनों से सामरिक मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए, तैयारियां तो दूर केंद्रीय गृहमंत्रलय ने इस आशंका को न केवल हवा में उड़ा दिया, बल्कि उसने चीन के इस बयान को अपना समर्थन दे दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है। यह तो हथियारों के सौदागर अमेरिका की साजिश है। अमेरिका हर हाल में एशिया में तनाव का माहौल चाहता है। भारत-पाक सीमा पर चीनी सेना की गर्दिश पर अमेरिकन खुफिया एजेंसी से रॉ की मिली इस आशय की सूचनाओं को भी केंद्रीय गृह मंत्रलय इन्ही अर्थो में ले रहा है।
अमेरिका हमारा कितना शुभचिंतक है, यह किसी से छिपा नहीं है,लेकिन सामरिक लिहाज से हम, हमारे दो पड़ोसी दुश्मनों के बीच बढ़ती दोस्ती की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। फिलवक्त हमें अमेरिकन साजिश के बजाय चीन-पाक की उस साजिश को समझना होगा जो सीमा पर सैन्य जमावट के लिए जिम्मेदार है। पाक अधिकृत कश्मीर में नियत्रंण रेखा पर पाकिस्तान के कई ऐसे प्रोजेक्ट चल रहे हैं,जिनका ठेका चीनी कंपनियों के पास है। इन्हीं कंपनियों के रक्षा की आड़ और तालिबानियों के हमले का खौफ दिखा कर चीन अपनी फौज को तैनात कर रहा है। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने चीन की ही मदद से जहां एक नया परमाणु संयंत्र शुरू कर लिया है,वहीं उसके दो और ऐसे प्रोजेक्ट पर तेजी के साथ काम चल रहा है। चीन इससे पहले भारत-पाक सीमा से सटी लगभग 4 हजार किलोमीटर लंबी सरहद पर सैन्य इंफ्र ास्ट्रक्चर का खतरनाक जाल बिछा चुका है। अब उसकी नजर नेपाल-बांग्लादेश से सटे सीमाई इलाके पर भी है।
चीन के साथ पाकिस्तान के बढ़ते याराने से अमेरिका की बेचैनी स्वाभाविक है,मगर नींद हमारी क्यों नहीं उड़ रही है? यह एक बड़ा सवाल है? क्या हमें एहतियाती तौर पर अपने सैन्य अफसरों पर भरोसा करते हुए वक्त रहते जरूरी कदम नहीं उठाने चाहिए। क्या हम सामरिक मोर्चे पर एक साथ चीन और पाकिस्तान जैसे दो देशों का मुकाबला करने में सक्षम हैं? क्या हमारी सरकार कोअविलंब इस आशय की आवश्यक समीक्षा नहीं करनी चाहिए? दगाबाज चीन की नापाक साजिश से सावधान रहने की आवश्यकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की सरहद पर सक्रिय ये शैतान पीठ पर छुरा मारने में माहिर हैं।
अमेरिका हमारा कितना शुभचिंतक है, यह किसी से छिपा नहीं है,लेकिन सामरिक लिहाज से हम, हमारे दो पड़ोसी दुश्मनों के बीच बढ़ती दोस्ती की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। फिलवक्त हमें अमेरिकन साजिश के बजाय चीन-पाक की उस साजिश को समझना होगा जो सीमा पर सैन्य जमावट के लिए जिम्मेदार है। पाक अधिकृत कश्मीर में नियत्रंण रेखा पर पाकिस्तान के कई ऐसे प्रोजेक्ट चल रहे हैं,जिनका ठेका चीनी कंपनियों के पास है। इन्हीं कंपनियों के रक्षा की आड़ और तालिबानियों के हमले का खौफ दिखा कर चीन अपनी फौज को तैनात कर रहा है। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने चीन की ही मदद से जहां एक नया परमाणु संयंत्र शुरू कर लिया है,वहीं उसके दो और ऐसे प्रोजेक्ट पर तेजी के साथ काम चल रहा है। चीन इससे पहले भारत-पाक सीमा से सटी लगभग 4 हजार किलोमीटर लंबी सरहद पर सैन्य इंफ्र ास्ट्रक्चर का खतरनाक जाल बिछा चुका है। अब उसकी नजर नेपाल-बांग्लादेश से सटे सीमाई इलाके पर भी है।
चीन के साथ पाकिस्तान के बढ़ते याराने से अमेरिका की बेचैनी स्वाभाविक है,मगर नींद हमारी क्यों नहीं उड़ रही है? यह एक बड़ा सवाल है? क्या हमें एहतियाती तौर पर अपने सैन्य अफसरों पर भरोसा करते हुए वक्त रहते जरूरी कदम नहीं उठाने चाहिए। क्या हम सामरिक मोर्चे पर एक साथ चीन और पाकिस्तान जैसे दो देशों का मुकाबला करने में सक्षम हैं? क्या हमारी सरकार कोअविलंब इस आशय की आवश्यक समीक्षा नहीं करनी चाहिए? दगाबाज चीन की नापाक साजिश से सावधान रहने की आवश्यकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की सरहद पर सक्रिय ये शैतान पीठ पर छुरा मारने में माहिर हैं।
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