देश में वायदा कारोबार ने मुनाफे की सारी हदें पार कर दी हैं। पिछले वर्षके मुकाबले चालू माली साल में अब तक 50 फीसदी से भी ज्यादा केकारोबार का अनुमान है। नतीजा यह है कि एक ओर जहां सटोरिएसरेआम चांदी काट रहे हैं। वहीं दूसरी ओर गरीबों का गहना चांदी आमआदमी की पकड़ से उछल कर आसमान पर जा टिकी है। एक साल केअंदर अगर चांदी के दामों में 42 हजार से भी ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गईहै तो इसके पीछे साफ तौर पर वायदा कारोबार ही है और यह कारोबारसट्टेबाजों के नियंत्रण में है।
चांदी को अधिकतम 76 हजार रुपए प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर तकचढ़ाने और आम निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ते ही बिकवाली के जरिएहजार पर भाव गिराने का सटोरियों का खेल सबके सामने है। जाहिरहै कि 11 दिन के अंदर चांदी 17 हजार पर टूट गई। यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं है कि चांदी पर जमकर कालाधन लग रहा है और अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब चांदी एक लाख का स्तर पार कर जाएगी। इससेपहले सटोरिए सोने पर भी ऐसा ही दांव आजमा चुके हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें लगा कि सोने से अब आम निवेशकोंका मोह भंग हो रहा है तो वे सोना छोड़ चांदी को पकड़ कर बैठ गए।
सवाल यह है कि तेजी-मंदी के इस खेल के बाद भी सरकार आखिर सो क्यों रही है? जब सरकार का यह रवैया है तोसटोरियों के हाथों की कठपुतली बन चुकी वायदा कारोबार की नियामक संस्था वायदा बाजार आयोगएफएमसी)से आखिर उम्मीद भी क्या की जा सकती है? सब कुछ आइने की तरह साफ होने के बाद भी एफएमसीयह सच स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि मूल्यों में उतार-चढ़ाव के लिए अंतत: वायदा कारोबार ही जिम्मेदार हैऔर इस बाजार का नियंत्रण सटोरियों के हाथ में है। इसमें शक नहीं कि चांदी की चमक एक और महाघोटाले केसंकेत दे रही है। असलियत तो यह भी है कि विकसित देशों की तर्ज पर किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्यदिलाने के नेक इरादे के साथ शुरू किए गए वायदा कारोबार का लाभ असल में बड़े व्यापारीनुमा सटोरियों को हीमिल रहा है। सब जानते हैं कि भारत का बाजार अभी वायदा जैसे विकसित कारोबार के लिए तैयार नहीं है।सरकार भी इस जमीनी हकीकत से नावाकिफ नहीं है।
सवाल यह भी है कि सरकार को इस कारोबार पर पाबंदी से परहेज क्यों है? आम उपभोग की जरूरी कमोडिटीज कोवायदा कारोबार से मुक्त रखने के उपभोक्ता मामलों के कार्य समूह की अनदेखी हो या फिर इसी मामले में अभिजीतसेन कमेटी की सिफारिशों को नजरअंदाज कर शकर पर वायदा कारोबार की इजाजत देने का गैर जिम्मेदारानारवैया। सरकार की नीयत साफ नहीं है, लेकिन हकीकत यह है कि बाजार की तमाम तार्किक आर्थिक चिंताओं केबाद भी आवश्यक वस्तुओं को वायदा कारोबार से मुक्त रखने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। सरकार के पाससिर्फ एक ही कुतर्क है कि जिंसों के वायदा कारोबार पर रोक से बाजार और दीगर वित्तीय हलकों में गलत संदेशजाएगा। स्पष्ट है कि सरकार की रूचि आम आदमी के बजाय जमा और मुनाफाखोरों को उपकृत करने में ज्यादा है।लिहाजा उपभोक्ताओं के शोषण का यह अंतहीन सिलसिला थमने वाला नहीं है । महंगाई से भी राहत मिलने कीउम्मीद नहीं है। आसमान चूमती कीमतों का कृत्रिम संकट वायदा बाजार की काली करतूतों का नतीजा है औरसरकार की भूमिका संदेह के दायरे में है।
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चांदी को अधिकतम 76 हजार रुपए प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर तकचढ़ाने और आम निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ते ही बिकवाली के जरिएहजार पर भाव गिराने का सटोरियों का खेल सबके सामने है। जाहिरहै कि 11 दिन के अंदर चांदी 17 हजार पर टूट गई। यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं है कि चांदी पर जमकर कालाधन लग रहा है और अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब चांदी एक लाख का स्तर पार कर जाएगी। इससेपहले सटोरिए सोने पर भी ऐसा ही दांव आजमा चुके हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें लगा कि सोने से अब आम निवेशकोंका मोह भंग हो रहा है तो वे सोना छोड़ चांदी को पकड़ कर बैठ गए।
सवाल यह है कि तेजी-मंदी के इस खेल के बाद भी सरकार आखिर सो क्यों रही है? जब सरकार का यह रवैया है तोसटोरियों के हाथों की कठपुतली बन चुकी वायदा कारोबार की नियामक संस्था वायदा बाजार आयोगएफएमसी)से आखिर उम्मीद भी क्या की जा सकती है? सब कुछ आइने की तरह साफ होने के बाद भी एफएमसीयह सच स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि मूल्यों में उतार-चढ़ाव के लिए अंतत: वायदा कारोबार ही जिम्मेदार हैऔर इस बाजार का नियंत्रण सटोरियों के हाथ में है। इसमें शक नहीं कि चांदी की चमक एक और महाघोटाले केसंकेत दे रही है। असलियत तो यह भी है कि विकसित देशों की तर्ज पर किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्यदिलाने के नेक इरादे के साथ शुरू किए गए वायदा कारोबार का लाभ असल में बड़े व्यापारीनुमा सटोरियों को हीमिल रहा है। सब जानते हैं कि भारत का बाजार अभी वायदा जैसे विकसित कारोबार के लिए तैयार नहीं है।सरकार भी इस जमीनी हकीकत से नावाकिफ नहीं है।
सवाल यह भी है कि सरकार को इस कारोबार पर पाबंदी से परहेज क्यों है? आम उपभोग की जरूरी कमोडिटीज कोवायदा कारोबार से मुक्त रखने के उपभोक्ता मामलों के कार्य समूह की अनदेखी हो या फिर इसी मामले में अभिजीतसेन कमेटी की सिफारिशों को नजरअंदाज कर शकर पर वायदा कारोबार की इजाजत देने का गैर जिम्मेदारानारवैया। सरकार की नीयत साफ नहीं है, लेकिन हकीकत यह है कि बाजार की तमाम तार्किक आर्थिक चिंताओं केबाद भी आवश्यक वस्तुओं को वायदा कारोबार से मुक्त रखने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। सरकार के पाससिर्फ एक ही कुतर्क है कि जिंसों के वायदा कारोबार पर रोक से बाजार और दीगर वित्तीय हलकों में गलत संदेशजाएगा। स्पष्ट है कि सरकार की रूचि आम आदमी के बजाय जमा और मुनाफाखोरों को उपकृत करने में ज्यादा है।लिहाजा उपभोक्ताओं के शोषण का यह अंतहीन सिलसिला थमने वाला नहीं है । महंगाई से भी राहत मिलने कीउम्मीद नहीं है। आसमान चूमती कीमतों का कृत्रिम संकट वायदा बाजार की काली करतूतों का नतीजा है औरसरकार की भूमिका संदेह के दायरे में है।
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