AAAराज्य सरकार की नई तबादला नीति-2011सामने है। पसंदीदा ट्रांसफर-पोस्टिंग देकर चहेतों को उपकृत करने के मामलों मेंअफसरशाही के हाथ एक बार फिर खाली हैं। सब कुछ सियासतदार ही तय करेंगे। आखिर पार्टी फंड के लिए चंदे का भी सवाल है। वैसे भी तबादलों से बैन उठाने के कैबिनेट के इस फैसले से राज्य सरकार के खजाने पर तकरीबन 5 सौ लाख का अतिरिक्त आर्थिक बोझ आने की आशंका है। इस भारी भरकम बोझ की भरपाई न सही कुछ तो कवर करने का काम माननीय ही कर सकते हैं। तबादलों की आड़ में सिर्फ अपनी जेबें भरने के लिए बदनाम अफसरशाही को शायद इसी वजह से एक बार फिर से कोई चांस नहीं दिया गया है।
एक अनुमान के अनुसार प्रदेश में राज्य सरकार के लगभग 61 विभागों में साढ़े पांच लाख अधिकारी कर्मचारी कार्यरत हैं,इनमें से सिर्फ 50 हजार शासकीय सेवकों को ही स्थानांतरण का लाभ मिलेगा। मोटे तौर पर प्रति 1 हजार कर्मचारियों के बीच महज 120 कर्मचारी ही तबादले का लाभ ले पाएंगे। पूरा खेल 37 दिनों का है। तबादलों की इस गणित का कुल जमा लब्बोलुआब यह है कि सरकार अबकि जरा सख्ती के मूड में है। ट्रांसफर के सात दिन के अंदर नई पदस्थापना पर हर हाल में ज्वाइनिंग देनी है,वर्ना निलंबन तय है। टाइम कम और काम ज्यादा है। सिर्फ 10 प्रतिशत में कोटा टाइट करने से क्राइसिस और भी बढ़ गई है। यह अधिकतम मांग के मुकाबले न्यूनतम उपलब्धता के आर्थिक फामरूले जैसा मामला है। यही वजह है कि बहुचर्चित तबादला उद्योग को सुर्खियों के पंख लग गए हैं। पूरे एक साल बाद बैन खुला है। बिचौलिए भी सक्रिय हैं। अंतरजिला तबादलों का पावर प्रभारी मंत्रियों के पास है, जबकि राज्य स्तर पर फैसले विभागीय मंत्री करेंगे। स्थानांतरण के फै सले लेते वक्त इन माननीयों को पार्टी पालिटिक्स भी देखनी है। जमीनी कार्यकर्ताओं की भावनाओं का भी आदर करना है। उधर,तबादलों के अधिकारों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके इन सियासतदारों से अफसरशाही खुश नहीं है। नौकरशाहों तर्क था कि सरकार आप हो इसमें शक नहीं,लेकिन सरकार तोआखिर हमें ही चलानी पड़ती है,लेकिन इन तमाम तर्को के बाद भी अंतत: अफसरशाही हार गई।
इस बीच स्थानांतरण से बैन हटने के साथ ही राजधानी में स्वाभाविक रूप से अजीब सी हलचल है। दिग्विजय सिंह सरकार में तबादला सीजन के दौरान यहां जिस कदर गदर मची थी, अबकि ऐसे ही आशंका है। तब स्थानांतरण की प्रत्याशा में बगैर इजाजत मुख्यालय छोड़कर यहां ठहरे अधिकारी -कर्मचारियों की धरपकड़ के लिए राजधानी प्रशासन ने होटलों में छापामारी की थी।
नई तबादला नीति में यूं तो कुछ खास नहीं है,लेकि न परंपरागत तौर पर पहले अनचाहे तबादले होंगे,फिर मनचाहे तबादलों का दौर चलेगा और फिर दनादन संशोधित आदेश जारी होंगे। स्थानांतरण की इस पेंचीदा प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही बैन फिर से लग जाएगा,लेकिन बैक डेट पर फाइल कब तक चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता है। अलबत्ता ऐसा क्यों होगा? जग जाहिर है। तबादलों के लिए सुविधा शुल्क का रिवाज नया नहीं है।नई तबादला नीति से कमाई वाली कुर्सियों में वर्षो से कुंडली बना कर बैठे अधिकारियों -कर्मचारियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
एक अनुमान के अनुसार प्रदेश में राज्य सरकार के लगभग 61 विभागों में साढ़े पांच लाख अधिकारी कर्मचारी कार्यरत हैं,इनमें से सिर्फ 50 हजार शासकीय सेवकों को ही स्थानांतरण का लाभ मिलेगा। मोटे तौर पर प्रति 1 हजार कर्मचारियों के बीच महज 120 कर्मचारी ही तबादले का लाभ ले पाएंगे। पूरा खेल 37 दिनों का है। तबादलों की इस गणित का कुल जमा लब्बोलुआब यह है कि सरकार अबकि जरा सख्ती के मूड में है। ट्रांसफर के सात दिन के अंदर नई पदस्थापना पर हर हाल में ज्वाइनिंग देनी है,वर्ना निलंबन तय है। टाइम कम और काम ज्यादा है। सिर्फ 10 प्रतिशत में कोटा टाइट करने से क्राइसिस और भी बढ़ गई है। यह अधिकतम मांग के मुकाबले न्यूनतम उपलब्धता के आर्थिक फामरूले जैसा मामला है। यही वजह है कि बहुचर्चित तबादला उद्योग को सुर्खियों के पंख लग गए हैं। पूरे एक साल बाद बैन खुला है। बिचौलिए भी सक्रिय हैं। अंतरजिला तबादलों का पावर प्रभारी मंत्रियों के पास है, जबकि राज्य स्तर पर फैसले विभागीय मंत्री करेंगे। स्थानांतरण के फै सले लेते वक्त इन माननीयों को पार्टी पालिटिक्स भी देखनी है। जमीनी कार्यकर्ताओं की भावनाओं का भी आदर करना है। उधर,तबादलों के अधिकारों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके इन सियासतदारों से अफसरशाही खुश नहीं है। नौकरशाहों तर्क था कि सरकार आप हो इसमें शक नहीं,लेकिन सरकार तोआखिर हमें ही चलानी पड़ती है,लेकिन इन तमाम तर्को के बाद भी अंतत: अफसरशाही हार गई।
इस बीच स्थानांतरण से बैन हटने के साथ ही राजधानी में स्वाभाविक रूप से अजीब सी हलचल है। दिग्विजय सिंह सरकार में तबादला सीजन के दौरान यहां जिस कदर गदर मची थी, अबकि ऐसे ही आशंका है। तब स्थानांतरण की प्रत्याशा में बगैर इजाजत मुख्यालय छोड़कर यहां ठहरे अधिकारी -कर्मचारियों की धरपकड़ के लिए राजधानी प्रशासन ने होटलों में छापामारी की थी।
नई तबादला नीति में यूं तो कुछ खास नहीं है,लेकि न परंपरागत तौर पर पहले अनचाहे तबादले होंगे,फिर मनचाहे तबादलों का दौर चलेगा और फिर दनादन संशोधित आदेश जारी होंगे। स्थानांतरण की इस पेंचीदा प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही बैन फिर से लग जाएगा,लेकिन बैक डेट पर फाइल कब तक चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता है। अलबत्ता ऐसा क्यों होगा? जग जाहिर है। तबादलों के लिए सुविधा शुल्क का रिवाज नया नहीं है।नई तबादला नीति से कमाई वाली कुर्सियों में वर्षो से कुंडली बना कर बैठे अधिकारियों -कर्मचारियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
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