नभ में तिरंगा फहरा दो, सचिन बाबू थोड़ा से जोर लगा दो..अपने ही घर-आंगन की दहलीज पर महाशतक से सिर्फ एक कदम दूर खड़े क्रिके ट के भगवान सचिन तेंदुलकर की आज सचमुच अग्निपरीक्षा है। मुंबई के इस महासंग्राम में मास्टर ब्लास्टर अकेले नहीं हैं। विश्वकप की सौगात के लिए सवा अरब हाथ उनके साथ हैं। क्या नेता, क्या अभिनेता? पूजा-अर्चना, हवन और यज्ञ। हर हाल में लंकादहन के लिए एक ओर प्रयाग के पवित्र संगम में बजरंग महारूद्र यज्ञ तो दूसरी ओर साबरमती जेल में मुस्लिम कैदियों की दुआएं। मानो विविधता से भरे हिंदुस्तान की सिर्फ एक ही महत्वाकांक्षा है ..विश्वकप हमारा हो।
भारत-श्रीलंका के शासनाध्यक्षों, सात राज्यों के सीएम, 37 केंद्रीय मंत्रियों के अलावा लाखों लाख क्रिकेटप्रेमियों के साथ आज ये धरती, ये आसमान, ये हवाएं और ये फिजाएं, सब साक्षी होंगे, एक इतिहास के और इतिहास रचेंगे जीतने की जिद, जोश और जुनून से लबरेज धोनी के धुरंधर। जज्बा उफान पर है। बेशक यह वक्त टीम इंडिया की क्षमताओं पर सवाल खड़े करने का नहीं है। मोहाली के हाईवोल्टेज सेमीफाइनल में पाक को पीट चुके माही के जांबाजों से अब सिर्फ लंका पर विजय की उम्मीद है। उम्मीदों की इस कसौटी पर खरा उतरने को खड़ी टीम इंडिया से सामने भी अब महज एक ही विकल्प है, विश्वकप..।
क्रिके ट प्रेमियों को सबसे ज्यादा अगर किसी पर भरोसा है तो वह हैं सचिन तेंदुलकर। अपने 22 साल के क्रिकेट कॅरिअर में अब तक 6 विश्वकप खेल चुके क्रिकेट के इस करिश्माई बल्लेबाज के सामने एक और इतिहास लिखने का यह ऐतिहासिक अवसर है। संभवत: यह उनका आखिरी वर्ल्डकप है। वह सौवें शतक की क्रीज पर खड़े हैं। पूरे 28 साल बाद यह ऐसा मौका है जब हम विश्व क्रिकेट में स्वयं क ो शहंशाह साबित करने के एकदम करीब हैं। यह मुंबई का वही वानखेड़े स्टेडियम है, जहां अब से 21 साल पहले क्रिकेट के इस भगवान ने बतौर बाल ब्याय विश्वकप का जो सपना देखा था, उसी सपने को साकार करने का दिन है।
वानखेड़े के पिच क्यूरेटर को सचिन से तीस मिनट में सौवें शतक की उम्मीद है। सचिन के लिए कुछ भी संभव है। वनडे में दोहरा शतक जड़ चुके सचिन यूं ही क्रि केट के भगवान नहीं हैं। लेकिन क्रिकेट भी आखिर अनिश्चितताओं का ही रोमांच है। इस खेल में यूं तो कुछ भी संभव है, मगर तथ्य यह है कि लंकाई चीतों के मुकाबले भारत के शेर किसी भी हालत में कम नहीं हैं। यहां संयम और समझदारी की दरकार है। टीम इंडिया की बैटिंग बेमिसाल है और सबसे बड़ी बात हौसले बुलंद हैं। मुकाबले में प्रतिस्पर्धी को कभी भी कम करके नहीं आंकना चाहिए। कम से कम श्रीलंका के सवाल पर टीम इंडिया किसी भी जोखिमपूर्ण भ्रम में नहीं है। उम्मीदों भरी कठिन परीक्षा का एक यर्थाथ पहलू यह भी है कि खेल के सिर्फ दो सच होते हैं। जीत या हार। ऐसे में हमें देश से यह उम्मीद भी करनी चाहिए कि हम खेल को खेल की भावना से ही लें।
भारत-श्रीलंका के शासनाध्यक्षों, सात राज्यों के सीएम, 37 केंद्रीय मंत्रियों के अलावा लाखों लाख क्रिकेटप्रेमियों के साथ आज ये धरती, ये आसमान, ये हवाएं और ये फिजाएं, सब साक्षी होंगे, एक इतिहास के और इतिहास रचेंगे जीतने की जिद, जोश और जुनून से लबरेज धोनी के धुरंधर। जज्बा उफान पर है। बेशक यह वक्त टीम इंडिया की क्षमताओं पर सवाल खड़े करने का नहीं है। मोहाली के हाईवोल्टेज सेमीफाइनल में पाक को पीट चुके माही के जांबाजों से अब सिर्फ लंका पर विजय की उम्मीद है। उम्मीदों की इस कसौटी पर खरा उतरने को खड़ी टीम इंडिया से सामने भी अब महज एक ही विकल्प है, विश्वकप..।
क्रिके ट प्रेमियों को सबसे ज्यादा अगर किसी पर भरोसा है तो वह हैं सचिन तेंदुलकर। अपने 22 साल के क्रिकेट कॅरिअर में अब तक 6 विश्वकप खेल चुके क्रिकेट के इस करिश्माई बल्लेबाज के सामने एक और इतिहास लिखने का यह ऐतिहासिक अवसर है। संभवत: यह उनका आखिरी वर्ल्डकप है। वह सौवें शतक की क्रीज पर खड़े हैं। पूरे 28 साल बाद यह ऐसा मौका है जब हम विश्व क्रिकेट में स्वयं क ो शहंशाह साबित करने के एकदम करीब हैं। यह मुंबई का वही वानखेड़े स्टेडियम है, जहां अब से 21 साल पहले क्रिकेट के इस भगवान ने बतौर बाल ब्याय विश्वकप का जो सपना देखा था, उसी सपने को साकार करने का दिन है।
वानखेड़े के पिच क्यूरेटर को सचिन से तीस मिनट में सौवें शतक की उम्मीद है। सचिन के लिए कुछ भी संभव है। वनडे में दोहरा शतक जड़ चुके सचिन यूं ही क्रि केट के भगवान नहीं हैं। लेकिन क्रिकेट भी आखिर अनिश्चितताओं का ही रोमांच है। इस खेल में यूं तो कुछ भी संभव है, मगर तथ्य यह है कि लंकाई चीतों के मुकाबले भारत के शेर किसी भी हालत में कम नहीं हैं। यहां संयम और समझदारी की दरकार है। टीम इंडिया की बैटिंग बेमिसाल है और सबसे बड़ी बात हौसले बुलंद हैं। मुकाबले में प्रतिस्पर्धी को कभी भी कम करके नहीं आंकना चाहिए। कम से कम श्रीलंका के सवाल पर टीम इंडिया किसी भी जोखिमपूर्ण भ्रम में नहीं है। उम्मीदों भरी कठिन परीक्षा का एक यर्थाथ पहलू यह भी है कि खेल के सिर्फ दो सच होते हैं। जीत या हार। ऐसे में हमें देश से यह उम्मीद भी करनी चाहिए कि हम खेल को खेल की भावना से ही लें।
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