बुधवार, 18 मई 2011

नकली नोटों का असली गुनहगार



वर्ष 1999 की 24 नवंबर। देश के लिए राष्ट्रीय शर्म की काली तारीख। इंडियन एयर लाइंस की फ्लाइट नंबर-814 नेपाल की राजधानी काठमांडू से नईदिल्ली के लिए उड़ान भरने को तैयार ही थी, तभी एयर बस को तालिबानी आतंकियों ने हाईजैक कर लिया। आतंकवादी हवाई जहाज को अमृतसर और फिर अफगानिस्तान के कंधार ले गए। अपने तीन खूंखार साथियों की रिहाई के लिए उग्रवादी अब तक 160 यात्रियों में से एक को शूट कर चुके थे। विमान के भीतर मातमी दहशत थी तो बाहर भारत सरकार सदमे में। इसी अगवा विमान के बिजनेस क्लास में अपनी दो स्विस महिला मित्रों के साथ एक और शख्स भी मौजूद था। यह शख्स था-रोबेटरे ग्योरी। स्विट्जरलैंड के इस सबसे अमीर आदमी को दुनिया करेंसी किंग के नाम से जानती है। स्विट्जरलैंड के साथ इटली की भी दोहरी नागरिकता का मालिक रोबेटरे ग्योरी बहुचर्चित डेलारू नामक कंपनी का मालिक है। भारत समेत यह कंपनी दुनिया के कई देशों के नोट (मुद्रा) छापती है। विश्व की 90 फीसदी करेंसी छापने की बिजनेस डील इस कंपनी के पास है। अब तक अकेले भारत से डेलारू कंपनी को 25 फीसदी कमाई होती रही है। यह कंपनी करेंसी पेपर के अलावा पासपोर्ट, हाई सिक्योरिटी पेपर, सिक्योरिटी प्रिंट, होलोग्राम और कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशन में भी डील करती है। देश में अभी तक असली-नकली नोटों की पहचान करने वाली मशीनों की सप्लाई भी यही कंपनी करती रही है।याद करें जैसे ही कंधार में विमान हाईजैक हुआ, स्विट्जरलैंड ने एक विशिष्ट दल को हाईजैकर्स से बातचीत करने के लिए कंधार भेजा था। भारत सरकार पर भी इस बात का दबाव था कि किसी भी कीमत पर वह करेंसी किंग रोबेटरे ग्योरी और उसकी महिला मित्रों की सुरक्षा की गारंटी दे। आतंकियों ने उसे प्लेन के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठा दिया। यात्री परेशान हो रहे थे, लेकिन ग्योरी आराम से अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था। उसके पास सैटेलाइट पेन ड्राइव और फोन था। स्विट्जरलैंड के इस सबसे अमीर शख्स और दुनियाभर के नोटों को छापने वाली कंपनी का मालिक रोबेटरे ग्योरी आखिर नेपाल क्या करने गया था? हो सकता है, यह कोई बड़ा सवाल न हो, लेकिन इससे भी बड़ा सवाल अभी भी कायम है कि आखिर वह कौन सी सौदेबाजी थी, जो भाजपा सरकार ने कुख्यात आतंकवादी मौलाना अजहर मसूद से की थी? भारत सरकार की ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि तीन आतंकवादियों को जहाज से लेकर स्वयं विदेश मंत्री जसवंत सिंह कंधार गए थे। कंधार कांड के रहस्यों पर यह कोई पहला सवाल नहीं है। ऐसे ही कुछ संगीन सवाल इससे पहले, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा ‘माई कंट्री माई लाइफ’ और तबके विदेश मंत्री जसवंत सिंह की किताब ‘ए कॉल टू ऑनर’ आने के बाद भी उठे थे। संसद में इस मसले को ध्यानाकर्षण के जरिए उठा चुके राज्यसभा सांसद और पत्रकार राजीव शुक्ला कहते हैं, आडवाणी और जसवंत सिंह की पुस्तकें कंधार कांड के रहस्य पर से पर्दा हटाने की एक अप्रकट कोशिश थीं, लेकिन ये दोनों किताबें यह सवाल उठाने में तो कामयाब रहीं कि आखिर वह कौन सी सौदेबाजी थी, जो भाजपा सरकार ने कुख्यात आतंकवादी मौलाना अजहर मसूद से की थी? तो क्या, करेंसी किंग रोबेटरे ग्योरी की सकुशल रिहाई भी सौदेबाजी की एक शर्त या फिर ऐसी ही कोई लाचारी थी? फिलहाल इस सवाल का आधिकारिक जवाब अनुत्तरित है?
सीबीआई ने मारा आररबीआई मे छापा: नेपाल बॉर्डर से सटे यूपी और बिहार के लगभग एक सैकड़ा राष्ट्रीयकृत बैंकों से नकली नोट मिलने की आम होती शिकायतों पर सीबीआई की यह आम धारणा थी कि पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई नेपाल के रास्ते भारत में नकली नोट भेज रही है और यही वजह है कि बॉर्डर के इलाकाई बैंकों में नकली नोटों का लेन-देन चल रहा है, लेकिन जब जांच आगे बढ़ी तो नतीजा अविश्वसनीय था। दबिश के दौरान बैंकों से एक ही जवाब मिला कि नोट तो आरबीआई से मिल रहे हैं। यहां से मिली पुख्ता जानकारी के बाद सीबीआई ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुंबई मुख्यालय में छापा मार दिया। वहां भी वैसे ही एकदम असली जैसे ऐसे नकली नोटों का जखीरा मिला जैसे नोट आईएसआई भारत में गलाती है। जब्त किए गए नोटों को सरकारी लैब भेजा गया। जांच में नकली नोटों की कागज, इंक, छपाई और सुरक्षा चिह्न् सब कुछ एकदम एक जैसे। सीबीआई एक बार फिर से सन्न रह गई। नोट एकदम असली और जब नोट असली हैं, तो फिर 500 का नोट 250 में क्यों बिक रहे हैं? नोटों को टोक्यो और हांगकांग की लैब में भेजा गया। वहां से भी रिपोर्ट आई कि नोट तो असली हैं। फिर इन्हें अमेरिका भेजा गया। जिस का डर था वही हुआ। अमेरिकन लैब से रिपोर्ट मिली नोट तो नकली हैं। लैब ने यह भी कहा कि दोनों में इतनी समानताएं हैं कि पकड़ पाना मुमकिन नहीं और जो विषमताएं हैं, वे भी जानबूझ कर डाली गई हैं। नोट बनाने वाली कोई बेहतरीन कंपनी ही ऐसे नोट बना सकती है। अमेरिका की लैब ने सीबीआई के सामने अपने दावों को सत्यापित करने के लिए साक्ष्य भी दिए। लैब ने बताया कि इन नकली नोटों में एक छोटी सी जगह है, जहां इरादतन छेड़छाड़ की गई है। सवाल यह उठा कि आईएसआई द्वारा भारतीय बाजार में चलाई जा रही नकली करेंसी आखिर रिजर्व बैंक के खजाने तक कैसे पहुंची? एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के 500 और 1000 के जो नोट हैं, उनकी क्वालिटी ऐसी है, जिसे आसानी से नहीं बनाया जा सकता है।
दगाबाज नोटों की मशीन:
कमाल यह भी है कि यही डेलारू कंपनी भारत को असली-नकली नोटों की जांच के लिए मशीनों की भी सप्लाई कर रही थी। स्वाभाविक है इन्हीं मशीनों के कारण देश में नकली नोटों की पहचान अभी भी नहीं हो पा रही है। जानकारों का मानना है कि ऐसी मशीनों को जब्त कर अगर इनके सॉफ्टवेयर की जांच कराई जाए तो एक और अंतरराज्यीय आर्थिक साजिश का पर्दाफाश हो सकता है, जिसके कारण पूरे विश्व में नकली नोटों का कारोबार चल रहा है।
यूरोप में यूं आया भूचाल: तो फिर आरबीआई के खजाने में नकली नोटों का जखीरा पहुंचा कैसे? अभी इस सवाल पर विचार चल ही रहा था कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पर सीबीआई की छापामारी के साथ ही यूरोप के शेयर मार्केट में भूचाल आ गया। देखते ही देखते करेंसी किंग रोबेटरे ग्योरी की डेलारू कंपनी के शेयर लुढ़क गए। यूरोप में खराब करेंसी नोटों की सप्लाई का मामला तूफान की तरह छा गया। कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स हसी ने आरबीआई को करेंसी पेपर की सप्लाई में गड़बड़ी को स्वीकार करते हुए इस्तीफा दे दिया। खबर है कि भारत सरकार ने डेलारू से अपने व्यावसायिक संबंध खत्म कर लिए हैं। जबकि डेलारू की चार प्रतियोगी कंपनियों को 16 हजार टन करेंसी पेपर का ठेका दे दिया गया है। 2005 में देश में डेलारू कैश सिस्टम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को आफिस खोलने की इजाजत दी थी। सीबीआई अब इस नतीजे पर पहुंच चुकी है कि नकली नोटों के मामले में डेलारू आईएसआई के लिए भी काम कर रही थी। माना जा रहा है कि भारत के लिए असली करेंसी की सप्लाई के साथ-साथ यही कंपनी आईएसआई को भी जाली नोटों की सप्लाई करती थी।

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