भारत की 15वीं जनगणना के उत्साहजनक आंकड़ें हमारे सामने हैं। बेशक हम जनसंख्या विस्फोट के प्रति अपेक्षाकृत संजीदा हुए हैं। महिलाओं क ी साक्षरता में भी अप्रत्याशित सुधार आया है। मगर सवाल यह है कि हम अपनी मासूम बेटियों के प्रति आखिर कब संवेदनशील होंगे? हम और हमारी सरकारों के लिए इससे ज्यादा शर्मसार करने वाली कोई और बात क्या होगी कि जनगणना के ताजा आंकड़े गर्भ में ही कन्या कत्ल की गवाही देते हैं। यह अकेले हमारी सरकारी नीतियों की विफलता का नतीजा नहीं है। यह सत्य हमारी, आपकी और हम सब की नीयत से जुड़े नैतिक मूल्यों के क्रियाकर्म का भी दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम है।
मध्यप्रदेश में एक दशक के दौरान जहां प्रति हजार पुरुषों के बीच 11 महिलाएं बढ़ी हैं, वहीं इसी बीच प्रति हजार बालकों के बीच 20 बालिकाएं घटी हैं। यह खतरे की घंटी है। अगर यही आलम रहा तो छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब की तरह मध्यप्रदेश को भी इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। सच तो यह है कि 6 साल से कम उम्र के बच्चों के बीच तेजी के साथ बिगड़ता लैंगिक संतुलन देशव्यापी चुनौती है। आजादी के बाद ऐसा पहली बार है जब बीते एक दशक के दौरान बच्चों का लिंगानुपात बड़ी तेजी के साथ घटा है। देश में वर्ष 1961 में प्रति हजार बालकों के बीच जहां 976 बालिकाएं दर्ज की गई थीं, वहीं आज प्रति हजार बालकों पर बालिकाओं की तादाद घटकर 914 रह गई है।
जनगणना के ताजा आंकड़ों के संदर्भ में हम अपने परिवार कल्याण कार्यक्र मों की सफलता के लिए खुद की पीठ भले ही ठोंक लें, लेकिन कोख में ही कन्या भ्रूण की हत्या का भूत हमारी नैतिकता को झकझोरता जरूर है। मर्म तक मार करते इस मसले पर अब अविलंब एक राष्ट्रव्यापी अभियान के जरिए ईमानदार कोशिश की जरूरत है। यह किसी एक का दायित्व नहीं है। इस आंदोलन के लिए जनजागृति और जन भागीदारी की दरकार है। हमें बेटियों को बचाना ही होगा। कहना न होगा कि आज के खुदगर्ज जमाने में अगर बेटियां जीवंत हैं, तो इसका श्रेय उनकी जिजीविषा और जीवन शक्ति को जाता है।
मध्यप्रदेश के लिए खासकर यह सुखद है कि पिछले एक दशक के दौरान जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार में 3.96फीसदी गिरावट आई है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आबादी के लिहाज से ब्रिटेन जैसे देश से भी हमारा प्रदेश आगे है। कमोवेश यही हाल छत्तीसगढ़ का भी है। छग प्रदेश की आबादी आस्ट्रेलिया जैसे देश से भी अधिक है। अगर वाकई हमें हमारी बेलगाम होती आबादी पर लगाम लगानी है, तो जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार पर कम से कम से 10 प्रतिशत की गति से गिरावट लानी होगी। साक्षरता के सवाल पर शानदार प्रदर्शन के बाद भी मध्यप्रदेश के लिए आदिवासी बहुल्य अलीराजपुर और छत्तीसगढ़ का बीजापुर जिला अपने-अपने राज्यों के निरक्षर साबित हुए हैं। निरक्षरता के इस कलंक को मिटाने का भी संकल्प लेना चाहिए।
जनगणना के ताजा आंकड़ों के संदर्भ में हम अपने परिवार कल्याण कार्यक्र मों की सफलता के लिए खुद की पीठ भले ही ठोंक लें, लेकिन कोख में ही कन्या भ्रूण की हत्या का भूत हमारी नैतिकता को झकझोरता जरूर है। मर्म तक मार करते इस मसले पर अब अविलंब एक राष्ट्रव्यापी अभियान के जरिए ईमानदार कोशिश की जरूरत है। यह किसी एक का दायित्व नहीं है। इस आंदोलन के लिए जनजागृति और जन भागीदारी की दरकार है। हमें बेटियों को बचाना ही होगा। कहना न होगा कि आज के खुदगर्ज जमाने में अगर बेटियां जीवंत हैं, तो इसका श्रेय उनकी जिजीविषा और जीवन शक्ति को जाता है।
मध्यप्रदेश के लिए खासकर यह सुखद है कि पिछले एक दशक के दौरान जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार में 3.96फीसदी गिरावट आई है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आबादी के लिहाज से ब्रिटेन जैसे देश से भी हमारा प्रदेश आगे है। कमोवेश यही हाल छत्तीसगढ़ का भी है। छग प्रदेश की आबादी आस्ट्रेलिया जैसे देश से भी अधिक है। अगर वाकई हमें हमारी बेलगाम होती आबादी पर लगाम लगानी है, तो जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार पर कम से कम से 10 प्रतिशत की गति से गिरावट लानी होगी। साक्षरता के सवाल पर शानदार प्रदर्शन के बाद भी मध्यप्रदेश के लिए आदिवासी बहुल्य अलीराजपुर और छत्तीसगढ़ का बीजापुर जिला अपने-अपने राज्यों के निरक्षर साबित हुए हैं। निरक्षरता के इस कलंक को मिटाने का भी संकल्प लेना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें