शनिवार, 14 मई 2011

शायद जाग ही जाए संवेदना


देश में किसानों की खुदकुशी के बेहद संवेदनशील मामलों पर राज्य सरकार ने भले ही खात्मा लगा दिया हो, लेकिन यह सवाल अभी मरा नहीं है? यह सुखद है कि मानवीय संवेदनाओं से जुड़े इस नाजुक मामले को राज्य मानवाधिकार आयोग ने स्वयं संज्ञान में लेकर दो सदस्यीय विशेषज्ञ समिति बनाई है। बेशक, किसानों की खुदकुशी के मसले पर राज्य मानवाधिकार आयोग की यह पहल स्वागत योग्य है, लेकिन इसी मामले में राज्य सरकार की भूमिका शुरू से ही बेहद शर्मनाक और निराशाजनक रही है।
सरकार इस तथ्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए उसका प्रशासनिक तंत्र जिम्मेदार है। सरकार की नजर में आज भी प्रदेश में खुदकुशी करने वाले 348 किसानों में से 65 शराबी थे और 35पागल । बाकीं आत्महत्याओं के पीछे पत्नी वियोग से लेकर प्रेम प्रसंग तक के कुछ भी कारण हो सकते हैं, लेकिन कर्ज इसका कारण नहीं था। विधानसभा में सरकार की स्वीकारोक्ति के अनुसार इन किसानों में कुछ तो नपुंसक भी थे। जबकि किसानों की जमीनी हकीकत से कौन वाकिफ नहीं है? मोटे तौर पर अगर राज्य के किसानों पर कर्ज का आंकलन करें तो अकेले अपेक्स बैंक के रिकॉर्ड में साढ़े सात हजार करोड़ का कर्ज दर्ज है। इसमें यदि कम से कम ढाई हजार करोड़ का साहूकारी कर्ज भी जोड़ दें तो यह आंकड़ा दस हजार करोड़ को पार कर लेता है। इसमें दूसरे सार्वजनिक और निजी बैंकों के कर्ज के आंकड़े शामिल नहीं है। राधाकृष्णन समिति पहले ही किसानों की आत्महत्या के लिए कर्ज को मुख्य कारण मान चुकी है।
कौन नहीं जानता कि कम भूमि वाले किसानों के लिए बगैर कर्ज के खेती करना असंभव हो गया है। बैंकों से मिलने वाला कर्ज पर्याप्त नहीं होता है। ग्रामीण क्षेत्रों के बैंकों में नौकरशाही का बोलबाला भी किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में साहूकार की पेढ़ी पर पगड़ी रखने के सिवाय किसान के पास कोई और रास्ता नहीं बचता है। प्रदेश में आत्महत्या करने वाले किसान 20 हजार से लेकर 3 लाख तक के साहूकारी कर्ज में दबे थे। साहूकारी कर्ज की ब्याज दर इतनी ज्यादा होती है कि साल भर के अंदर की कर्ज की मात्र दोगुनी हो जाती है। ऐसे में यदि फसल खराब हो जाए तो गरीब किसान के पास जीने के लिए कोई और वजह बचती है,क्या?
किसानों को आज तक उन्नत तकनीक का लाभ नहीं मिल पाया है। विभिन्न कारणों से प्रति व्यक्ति और प्रति हेक्टेयर उत्पादन की मात्र तेजी के साथ कम होती जा रही है। बिजली,पानी और नकली खाद-बीज का संकट खेती के साथ सदैव बना रहता है। फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता। काला बाजारियों और जमाखोरों का बाजारू दबाव हो या फिर भ्रष्ट सरकारी मशीनरी,तिस पर बेईमान मौसम सब के सब अंतत: किसानों की जान के दुश्मन ही तो हैं। उम्मीद है ,जांच समिति जल्द ही किसानों की आत्महत्या के कारणों और समाधानों की रिपोर्ट राज्य मानवाधिकार आयोग को सौंप देगी और आयोग अपनी अनुशंसाओं के साथ इसे सरकार के सुपुर्द कर देगा। शायद, अन्नदाता के प्रति सरकार की संवेदनाएं जाग जाएं! फिलहाल ,उम्मीद तो यही की जानी चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें