जाने-अनजाने में ही सही,लेकिन ईसाइयों का ब्यौरा जुटाने की कवायद सरकार के गले में हड्डी की तरह फंस गई है। गुपचुप चल रही इस चाल की प्रदेश टुडे ने पोल क्या खोली, नेशनल मीडिया को तो जैसे मसाला मिल गया। आनन-फानन में एनडीटीवी ने अपने प्राइम टाइम पर इसी मसाले पर तड़का मारा और मसालेदार खिचड़ी पका दी। अब इसके सियासी निहितार्थो के तमाम अर्थो पर बहस का दौर है। देश में जातीयगत आधार पर जनगणना की तरफदार कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र की यूपीए सरकार इस मसले को किस नजरिए से लेती है, यह तो वक्त ही बताएगा,लेकिन यह खुलासा ऐसे समय पर सामने आया है ,जब राजधानी में कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के प्रथम प्रदेश आगमन पर कांग्रेसियों का मजमा है। कांग्रेस का ईसाइयत मोह जग जाहिर है। मतलब, मामले को तूल मिलना तकरीबन तय है। कदाचित इसी आशंका के मद्देनजर राज्य सरकार बचाव की मुद्रा में है, और सरकारी प्रवक्ता सच स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं , लेकिन खबर पुख्ता है कि पुलिस मुख्यालय ने 22 मार्च को राज्य के सभी एसएसपी और एसपी को इस आशय के सर्कु लर जारी किए थे। हालांकि मामले के खुलासे के बाद डीजीपी ने भूल सुधार ली ै,लेकिन कमाल की बात तो यह है कि सरकार वाकई ईसाइयों के ऐसे किसी भी सव्रेक्षण से बेखबर थी।
प्रदेश में ऐसा पहली बार नहीं है, जब सरकार बेखबर रहे और उसके मातहत सरकार की नजर में खुद के नंबर बढ़ाने के लिए ऐसी करामात चुपचाप कर दें। कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार के जमाने सरकारी कर्मचारियों की संघ में भागीदारी पर पाबंदी लगा दी गई थी। भाजपा के शिवराज सत्त्ता में आए तो बैन हट गया। आमतौर पर ऐसी सियासी परंपराओं से प्रेरित सरकारी दज्रे के अधिकारी-कर्मचारी अपने सियासी आकाओं को खुश करने के लिए दो कदम आगे बढ़कर कब-क्या कमाल कर दें,कुछ कहा नहीं जा सकता है? प्रदेश पुलिस के मुखिया एसके राउत की इस स्वीकारोक्ति से कि पीएचक्यू में निचले स्तर से यह आदेश जारी हुआ, इस तथ्य की पुष्टि करता है। सरकार बैकफुट पर है और प्रदेश में ईसाईयों की यह नायाब पुलिसिया जनगणना उसके लिए सिरदर्द बन गई है। बाहर से न सही लेकिन सरकार भीतर से किस कदर हिली हुई है अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि असलियत सामने आते ही मामले की जांच का जिम्मा इंटेलीजेंस के एडीजी को सौंपा गया है। दस दिन के अंदर प्रदेश के ईसाइयों की राजनैतिक, आर्थिक और व्यापारिक हैसियत तलब करने वाला इतना बड़ा आदेश आखिर पुलिस मुख्यालय के ऐसे कितने छोटे स्तर से निकल गया कि किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी? यह भी एक बड़ा सवाल है। सियासी नजरिए से इस मामले को मंडला कुं भ से जोड़नेवालों की भी कमी नहीं है। इस मामले में कुछ और तर्क भी हैं, तर्क है कि केंद्र सरकार आमतौर पर राज्यों से ऐसी जानकारियां मांगती रहती है? आंकड़े इसीलिए जुटाए जा रहे थे। सवाल यह है कि ये ब्यौरा पुलिस का खुफिया तंत्र ही क्यों जुटा रहा था? आमतौर पर प्रदेश में ऐसे सव्रेक्षण का निर्वाह प्रशासनिक स्तर पर करने की परंपरा रही है।
प्रदेश में ऐसा पहली बार नहीं है, जब सरकार बेखबर रहे और उसके मातहत सरकार की नजर में खुद के नंबर बढ़ाने के लिए ऐसी करामात चुपचाप कर दें। कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार के जमाने सरकारी कर्मचारियों की संघ में भागीदारी पर पाबंदी लगा दी गई थी। भाजपा के शिवराज सत्त्ता में आए तो बैन हट गया। आमतौर पर ऐसी सियासी परंपराओं से प्रेरित सरकारी दज्रे के अधिकारी-कर्मचारी अपने सियासी आकाओं को खुश करने के लिए दो कदम आगे बढ़कर कब-क्या कमाल कर दें,कुछ कहा नहीं जा सकता है? प्रदेश पुलिस के मुखिया एसके राउत की इस स्वीकारोक्ति से कि पीएचक्यू में निचले स्तर से यह आदेश जारी हुआ, इस तथ्य की पुष्टि करता है। सरकार बैकफुट पर है और प्रदेश में ईसाईयों की यह नायाब पुलिसिया जनगणना उसके लिए सिरदर्द बन गई है। बाहर से न सही लेकिन सरकार भीतर से किस कदर हिली हुई है अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि असलियत सामने आते ही मामले की जांच का जिम्मा इंटेलीजेंस के एडीजी को सौंपा गया है। दस दिन के अंदर प्रदेश के ईसाइयों की राजनैतिक, आर्थिक और व्यापारिक हैसियत तलब करने वाला इतना बड़ा आदेश आखिर पुलिस मुख्यालय के ऐसे कितने छोटे स्तर से निकल गया कि किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी? यह भी एक बड़ा सवाल है। सियासी नजरिए से इस मामले को मंडला कुं भ से जोड़नेवालों की भी कमी नहीं है। इस मामले में कुछ और तर्क भी हैं, तर्क है कि केंद्र सरकार आमतौर पर राज्यों से ऐसी जानकारियां मांगती रहती है? आंकड़े इसीलिए जुटाए जा रहे थे। सवाल यह है कि ये ब्यौरा पुलिस का खुफिया तंत्र ही क्यों जुटा रहा था? आमतौर पर प्रदेश में ऐसे सव्रेक्षण का निर्वाह प्रशासनिक स्तर पर करने की परंपरा रही है।
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