यूनियन कार्बाइड के खतरनाक रासायनिक कचरे के विनिष्टीकरण पर दो सप्ताह के अंदर एक्शन प्लान मांग कर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के होश उड़ा दिए हैं। केंद्र विनिष्टीकरण की निगरानी के लिए हाईकोर्ट द्वारा पहले से ही गठित टास्क फोर्स को भंग कराने के पक्ष में था। मध्यप्रदेश सरकार की मर्जी के खिलाफ केंद्र की यह भी मंशा थी कि निगरानी का जिम्मा मंत्री समूह द्वारा गठित ओवरटाइम कमेटी को सौंपा जाए, लेकिन उच्च न्यायालय ने सख्त रूख अपनाते हुए केंद्र की इन तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दरअसल, असलियत तो यह है कि इस खतरनाक कचरे को नष्ट करने के मामले में केंद्र और राज्य सरकार की नीयत कभी भी ठीक नहीं रही है। विश्व की इस सबसे बड़ी औद्योगिक त्रसदी के 7 साल बाद ही इस तथ्य का खुलासा हो गया था कि कार्बाइड कारखाना परिसर में 1.5 मिलियन टन खतरनाक रासायनिक मलबा मौजूद है, जो बारिश के मौसम में रिस कर 3 किलोमीटर की परिधि में मौजूद 17 से भी ज्यादा बस्तियों के भूमिगत जल को जहरीला कर चुका है,लेकिन विडंबना देखिए हादसे के पूरे 27 साल बाद भी मिक कचरा जस का तस है। इससे पहले हाईकोर्ट ने 350 टन कचरे को गुजरात के अंकलेश्वर स्थित इंसीनेटर में नष्ट करने के आदेश दिए थे ,लेकिन गुजरात सरकार तब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले गईथी। सुप्रीम कोर्ट की ताजा व्यवस्था के तहत केंद्र के निर्देशन में गुजरात और मध्यप्रदेश सरकार को मिलकर इसका निराकरण करना है,लेकिन क्या केंद्रऔर क्या मध्यप्रदेश सरकार? कोई भी इस मसले में गंभीर नहीं है।
अव्वल तो यह कि दोनों सरकारें यह मानने को ही तैयार नहीं हैं कि रासायनिक कचरा मानव जीवन या फिर पर्यावरण के लिए खतरनाक है। याद करें, अर्सा पहले राजधानी प्रवास के दौरान यूनियन कार्बाइड के कारखाने पहुंचे केंद्रीय वन एव पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने वहां की मिट्टी उठाकर सरेआम कहा था कि देखिए, मैने तो मिट्टी अपने हाथ में ले रखी है। मुङो तो कुछ नहीं हुआ। कहां है,जहर..यह तो एक दम वही बात थी कि आप हाथ में सिगरेट ले लें और फिर कहें,देखो मुङो तो कैंसर हुआ ही नहीं। कभी इसी रासायनिक कचरे की सफाई के लिए दाऊ केमिकल्स से भारी भरकम फंड की मांग करने वाला केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्रलय जहां आज इस मामले में रहस्यमयी खामोशी ओढ़ कर बैठ गया है, वहीं मध्यप्रदेश सरकार भी प्राय: यह साबित करने की कोशिश करती रही है कि रासायनिक कचरा जहरीला नहीं है। राज्य सरकार अपने दावों को पुख्ता करने के लिए अक्सर डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ग्वालियर और राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान का हवाला देती रही है। जबकि यह जग जाहिर तथ्य है कि 15 हजार बदनसीबों को मार कर तकरीबन 5 लाख लोगों को अधमरा कर चुकी हत्यारिन मिथाइल आइसोसाइनड (मिक)पीड़ितों की दूसरी पीढ़ी को आज भी जिस तरह का धीमा जहर दे रही है, वह दर्दनाक भी है और खतरनाक भी,लेकिन अमेरिकी हितों के पोषण में अंधी हो चुकी हमारी संवेदना शून्य सरकारें कुछ देख नहीं सकती हैं।
अव्वल तो यह कि दोनों सरकारें यह मानने को ही तैयार नहीं हैं कि रासायनिक कचरा मानव जीवन या फिर पर्यावरण के लिए खतरनाक है। याद करें, अर्सा पहले राजधानी प्रवास के दौरान यूनियन कार्बाइड के कारखाने पहुंचे केंद्रीय वन एव पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने वहां की मिट्टी उठाकर सरेआम कहा था कि देखिए, मैने तो मिट्टी अपने हाथ में ले रखी है। मुङो तो कुछ नहीं हुआ। कहां है,जहर..यह तो एक दम वही बात थी कि आप हाथ में सिगरेट ले लें और फिर कहें,देखो मुङो तो कैंसर हुआ ही नहीं। कभी इसी रासायनिक कचरे की सफाई के लिए दाऊ केमिकल्स से भारी भरकम फंड की मांग करने वाला केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्रलय जहां आज इस मामले में रहस्यमयी खामोशी ओढ़ कर बैठ गया है, वहीं मध्यप्रदेश सरकार भी प्राय: यह साबित करने की कोशिश करती रही है कि रासायनिक कचरा जहरीला नहीं है। राज्य सरकार अपने दावों को पुख्ता करने के लिए अक्सर डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ग्वालियर और राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान का हवाला देती रही है। जबकि यह जग जाहिर तथ्य है कि 15 हजार बदनसीबों को मार कर तकरीबन 5 लाख लोगों को अधमरा कर चुकी हत्यारिन मिथाइल आइसोसाइनड (मिक)पीड़ितों की दूसरी पीढ़ी को आज भी जिस तरह का धीमा जहर दे रही है, वह दर्दनाक भी है और खतरनाक भी,लेकिन अमेरिकी हितों के पोषण में अंधी हो चुकी हमारी संवेदना शून्य सरकारें कुछ देख नहीं सकती हैं।
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