शनिवार, 7 मई 2011

कागजी करारों का अंजाम


्रमध्यप्रदेश में औद्योगिक निवेश की नाकामी के मसले पर कौन किससे परेशान है? सरकार,निवेशकों से या निवेशक सरकार से? राज्य में औद्योगिक विकास की संभावनाओं के साथ शुरू किए गए निवेश के इस अभियान की आज हालत खराब है। तीन साल के दौरान साइन किए गए 16 हजार क रोड़ के 443 एमओयू में से महज 6 प्रतिशत ही मूर्तरूप में हैं। 111 एमओयू सरकार पहले ही निरस्त कर चुकी है। अब नए एमओयू नहीं साइन किए जाने के साथ ,चेतावनी दी गई है कि करार पर काम नहीं हुआ तो शेष एमओयू भी खारिज कर दिए जाएंगे। सरकार के इस फैसले से उद्योग जगत को क्या संदेश जाएगा? क्या ऐसा कोई फैसला बेहतर विकल्प हो सकता है? सरकार को इन तथ्यों की भी समीक्षा करनी चाहिए।
सच तो यह है कि देश के इस बीमारू राज्य में उद्योग के लिए निवेश से ज्यादा अधोसंरचना के विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। नई औद्योगिक नीति में सरकार ने इंडस्ट्रीयल इन्फ्र ास्ट्रक्चर के लिए विशेष फं ड के प्रबंध की बड़ी-बड़ी बातें की थीं ,लेकिन आज भी सच तो यह है कि इस मद में ढांचागत विकास के लिए राज्य सरकार सालाना सिर्फ10 करोड़ रुपए ही खर्च कर रही है। जबकि उद्योग जगत इसके लिए हर साल 1 हजार करोड़ के फंड की जरूरत महसूस करता है। लालफीता शाही से निपटने और उद्योगपतियों की समस्याओं के फौरन निदान के लिए वन टू वन फार्मूले की बात आई थी , लेकिन अमल के सवाल पर नतीजा शिफर है। सिंगल विंडो की सुविधा सरकार अभी तक तय नहीं कर पाई है। बिजली,औद्योगिक विकास की बुनियादी जरूरत होती है। इसी इरादे से राज्य में मध्यप्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम 2000 लाया गया था। 1991 में मध्यप्रदेश विद्युत मंडल का विभाजन कर विद्युत वितरण कंपनियां बनाई गईं लेकिन यह कवायद भी अंतत: कारगर साबित नहीं हुई। बिजली कंपनियां आज भी हजारों करोड़ के घाटे से उबर नहीं पाई हैं। राज्य में उर्जा क्षति 30 फीसदी से भी ऊपर है। प्रदेश की 11 बिजली उत्पादन ईकाइयां ओवर एज हैं। मांग के मुकाबले राज्य में रोजाना बिजली की आपूर्ति में1100 मेगावाट की कमी है। पीक ऑवर पर यही मांग बढ़कर 1500 मेगावाट पहुंच जाती है।
राज्य में औद्योगिक विकास की एक और बड़ी विडंबना भूखंडों का अभाव है। कहने को तो सरकार के पास 20 हजार का लैंड बैंक है, लेकिन असलियत यह है कि इंदौर के पीथमपुर में स्थित एशिया के सबसे बड़ेऔद्योगिक क्षेत्र, स्पेशल इकॉनामिक जोन (सेज ) में अब जमीन नहीं बची है। भारत के इस ट्रेटायड के विस्तार के लिए सरकार मक्सी और बेटमा में जमीन देने को तैयार है,लेकिन बुनियाद विकास के अभाव में निवेशक जाने को तैयार नहीं हैं। प्रदेश में छोटे-बड़े 35 औद्योगिक क्षेत्र हैं लेकिन वहां भी जमीन नहीं बची है। उद्योग के लिए न्यूनतम 20-25 एकड़ भूखंड की जरूरत होती है, लेकिन जमीन टुकड़ों में उपलब्ध है। यह भी सच है कि प्रदेश की भौगोलिक स्थित औद्योगिक विकास में सबसे बड़ी बाधा है। सरकार के लिए यह संभव नहीं कि वह हर जगह इन जरूरतों को पूरा कर सके। राज्य का रोजानाऔद्योगिक उत्पादन अभी 5 हजार करोड़ का है।

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