मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दूसरे कार्यकाल की तीसरी कमिश्नर-कलेक्टर कांफ्रेंस सरसरी तौर पर गहरी छाप छोड़ने में कामयाब रही है। प्रशासनिक कसावट और प्रशासनिक सजर्री के परंपरागत उपायों के एकदम इतर प्रशासनिक प्रबंधन की रचनात्मकता से साफ है कि सरकार को अफसरशाही पर भरोसा तो है लेकिन अब वह सिर्फ अफसरों के भरोसे नहीं है। सीधे संवाद और समन्वय के बीच मुख्यमंत्री ने अपनी अपेक्षाएं और इरादे जिस कुशलता से स्पष्ट किए हैं, इससे नौकरशाही का यह मिथक भी तकरीबन टूट चुका होगा कि शिवराज अब अनाड़ी नहीं रहे। अब वह संभवत:सरकार बना भी सकते हैं और यकीनन चला भी सकते हैं। शिव सरकार के शुरूआती कार्यकाल में यह आम धारणा बनी थी कि उनमें प्रशासनिक पकड़ की कुशलता नहीं है ,लेकिन मिशन-2013 के आसन्न सियासी घमासान के मद्देनजर मुख्यमंत्री की बारीक प्रशासनिक बुनावट बताती है कि अकेले विकास की बुनियाद पर खड़ी सरकार की बेदाग छवि ही बेड़ा पार लगा सकती है। शायद यही वजह है कि शिवराज मैदानी इलाकों में प्रशासनिक अफसरों की एक ऐसी यंग टीम खड़ी करना चाहते हैं जो नित नई रचनात्मक सोच, ताजा उमंग और उर्जा के साथ लक्ष्य भेदने की कूबत रखती हो। वह ऐसी ही एक और अनुभवी टीम वल्लभ भवन ,सतपुड़ा और विंध्यांचल में भी चाहते हैं। प्रशासनिक सुधारों की इस कवायद से पहले मंत्रियों,प्रमुख सचिवों और सचिवों के साथ चली साझा मैराथन बैठकों के सिलसिले को इन्हीं अर्थो में समझा जा सकता है। समय-समय पर माननीयों के साथ नौकरशाहों के तल्ख होते रिश्तों पर तालमेल की पहल रही हो या जब-तब पार्टी गाइड लाइन की पटरी छोड़ते मंत्रियों को नसीहत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह बेहतर प्रबंधन की ही रणनीति अपनाते रहे हैं। बेशक, दो दिन तक चली कमिश्नर-कमिश्नर कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री का रचनात्मक प्रबंधन काबिले गौर रहा। उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशासनिक अफसरों को पुरुस्कृत करने का प्रहसन रहा हो या फिर दंडित करने की दो टूक चेतावनी। या फिर दिन में इन दोनों विकल्पों के बीच प्रशासनिक अधिकारियों के बीच परस्पर प्रतिस्पर्धापूर्ण अवसर खड़े करने की रणनीति रही हो और रात में सीएम हाउस में इन्हीं अफसरों को डिनर देकर दिल जीत लेने वाली मेजबानी। कहीं सपाट तो कहीं सांकेतिक अर्थो में मुख्यमंत्री यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि वह सरकारी योजनाओं का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के पक्ष में हैं। अफसर सिर्फ शो पीस नहीं हैं और अगर वह ऐसा करते हैं तो यह प्रदेश की 7 करोड़ आबादी के साथ अन्याय दंडनीय अपराध है। एन वक्त पर डिंडौरी कलेक्टर का विकेट चटका कर सीएम ने यह भी साबित कर दिया है कि देर नहीं लगेगी। लापरवाही नहीं चलेगी। चलेगा वही जो खुद को साबित करेगा। एक समय इसी सरकार की खासी किरकिरी करा चुके चंद नौकरशाह अब बंद एसी चेंबरों में ऊंघते नहीं हैं अलबत्ता पसीने में तरबतर फाइलों के ढेर में मिलते हैं। असल में अब सबके रिपोर्ट कार्ड सीएम के हाथ में हैं। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मौजूदा प्रशासनिक प्रबंधन किस हद तक सरकार की सार्वजनिक छवि को सुधार पाता है? यह देखना वास्तव में बेहद दिलचस्प होगा। मगर इतना तय है कि आगाज तो अच्छा है,अंजाम खुदा जाने..
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