विधान सभा भवन से कुछ ही फासले पर बीएचईएल के वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में क्लोरीन गैस के रिसाव का आपात संकट भले ही टल गया हो, लेकिन ऐसे तमाम जानलेवा खतरे इतनी आसानी से खत्म होने वाले नहीं हैं। दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रसदी का दंश ङोल चुकी राजधानी भोपाल अब इस कदर संवेदनशील है कि हवा के रुख में जरा सी तल्खी भी रूह फना कर देती है। हत्यारिन मिथाइल आइसोसाइनेट के हाथों 15 हजार से भी ज्यादा मौतों का भुतहा मंजर देख चुके इस खूबसूरत शहर में अगर अब जरा सी रसोई गैस भी रिसती है तो सिहरन, सनसनी, अफरातफरी और हड़कंप के साथ दहशत सरपट दौड़ पड़ती है। मध्य प्रदेश के जल शोधन गृहों में 8 माह के दौरान क्लोरीन गैस रिसने की यह तीसरी और एक माह के अंदर दूसरी बड़ी घटना है। जनवरी में शहडोल के बरगवां स्थित एक जूट मिल के वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में क्लोरीन के रिसाव से दो सौ लोगों की हालत बिगड़ गई थी। ऐसा ही एक हादसा पिछले माह राजगढ़ स्थित पीएचई के जलशोधन गृह में होने से सैकड़ों लोग चपेट में आ गए थे , बावजूद इसके हमारी मानवीय लापरवाही कभी भी और कैसा भी कातिलाना जोखिम लेने को तैयार है। बीएचईएल के जल शोधन गृह में जब क्लोरीन का रिसाव हुआ तब हवा उत्तर से पश्चिम की ओर बह रही थी। यानि बिड़ला मंदिर के विपरीत बसी झुग्गियां बाल-बाल बच गईं। आंखों में जलन और घुटन के बीच जब सच समझ में आया तब तक सौ से भी ज्यादा लोग फंस चुके थे। गनीमत थी कि गैस की सांद्रता 60 से कम थी। कहते हैं, इसकी अधिकता और निरंतरता सीधे फेफड़े फाड़ती है और समूचे श्वसन तंत्र को जख्मी कर देती है,इसके कहर से आंखें भी अछूती नहीं रहतीं। सरकारी दावे के मुताबिक हालात दो घंटे के अंदर काबू में आ गए, लेकिन क्या अकेले यही खुशफहमी काफी है? असल में क्लोरीन का आम आदमी के दैनिक जीवन से गहरा नाता है। ऐसे में अतिरिक्त सतर्कता के बगैर इन हादसों को रोक पाना संभव नहीं है। विशेषज्ञों की मानें तो क्लोरीन से जल का शोधन भी किसी साइलेंट किलर से कम नहीं है। जल जनित बीमारियां स्थाई समस्या है। जल में मौजूद कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के शमन के लिए क्लोरीन गैस के जरिए जल का उपचार किया जाता है। नियमानुसार जल शुद्धीकरण में क्लोरीन की निर्धारित मात्र का इस्तेमाल होना चाहिए। ओटी टेस्ट पॉजीटिव इसका मानक है, मगर ऐसा होता नहीं है। पानी में मिलाया जाने वाला क्लोरीन वास्तव में कैल्शियम हाइपो क्लोराइड होता है। जो पानी में मौजूद आक्सीजन के फ्री रेडिकल को खत्म कर देता है। यह एक ऐसा सॉल्ट है जिसके अपने साइड इफैक्ट हैं। मसलन-बालों का झड़ना, त्वचा के रोग, अल्सर और गैस्ट्रिक की समस्या। यही वजह है कि पेरू समेत विभिन्न देशों में जल शुद्धिकरण के लिए क्लोरीन और उसी के घटक ब्लीचिंग के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। पानी में क्लोरीन के अत्याधिक इस्तेमाल के खतरों की तरफ पहली बार दुनिया का ध्यान तब गया था जब इसी वजह से दक्षिण अफ्रीका में हैजे के कारण हजारों लोग मारे गए। विडंबना यह है कि हमारा लापरवाह सरकारी तंत्र गैस रिसाव की भारी कीमत चुकाने के बाद भी सबक लेने को तैयार नहीं है। जल शुद्धीकरण के लिए क्लोरीन के इतर वैकल्पिक उपाय तो दूर की बात है।
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