मंगलवार, 9 अगस्त 2011

स्टॅलवॉक : यही पैगाम हमारा..



टोरंटों से सीधे मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और फिर देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंचा स्टॅलवॉक अब देश के दूसरे बड़े शहरों की ओर रूख करने की तैयारी में है। ऐसी में इसके औचित्य पर बहस का छिड़ना भी लाजिमी है, लेकिन महिलाओं की इस मोर्चाबंदी पर बहस के केंद्र से बुनियाद मुद्दे गायब हैं। सवाल अकेले मॉड,मिनी और माइक्रो ड्रेस पर आकर टिक गए हैं। यानि यौन हमलों के लिए उत्तेजक पोषाक आखिर कितनी जिम्मेदार है? स्टॅलवॉक के समर्थकों और विरोधियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप के इस सिलसिले में एक पक्ष अपने तमाम तर्को से जहां खुले लिबास को दोषी ठहरा रहा है, वहीं दूसरा पक्ष खुले लिबास के मुकाबले इसके लिए तंग सामाजिक नजरिए को दोषी मान रहा है। सच तो यह भी है कि बेशर्मी मोर्चा रातोंरात यूं ही मशहूर नहीं हो गया है। इसकी पहचान के केंद्र में वही दृष्टिदोष है जिसने नारीवादियों के वास्तविक संदेश को नेपथ्य में डालकर यह उत्सुकता जगा दी कि आखिर भारतीय महिलाओं का अश्लील प्र्दशन कैसा होगा? टोरंटों,लंदन और अमेरिका में स्टॅलवॉक के नग्न प्र्दशनों से पैदा हुई जिज्ञासा तब हवा हो गई जब बेशर्मी मोर्चे की शक्ल में पहले एशियाई शहर भोपाल पहुंचे स्टॅलवॉक मे शामिल आधा सैकड़ा से भी ज्यादा समर्थक उत्तेजक नहीं अपितु आकर्षक परिधानों में सड़क पर आए। अंग प्रदर्शन की आस लगाकर बैठे मीडिया को ऐसा ही झटका राजधानी दिल्ली में भी लगा। वस्तुत: वस्तुस्थिति तो यह भी है कि शुरूआती दौर में बेशर्मी मोर्चे के आयोजक स्वयं अपने सामाजिक सरोकार का साफतौर पर सामने रखने में नाकाम रहे लिहाजा सवाल ऐसे उठे कि आयोजकों को बार-बार सफाई देनी पड़ी और आलोचकों को मुह बिचकाने का मौका मिला। सच पीछे ही रह गया और यौनिक हमलों के लिए माइक्रो ड्रेस फोकस पर हो गई। यह एक वजह हो भी सकती है और नहीं भी लेकिन औरत की अस्मिता से जुड़े इस गंभीर विषय को समग्र रूप से देखने की जरूरत है। पूरा देश हो या देश का दिल मध्यप्रदेश महिलाओं की हालत ठीक नहीं है। महिलाओं के मामले में भारत देश का चौथा सबसे खतरनाक देश है। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड वूमेन के मुताबिक 30 फीसदी महिलाएं अपने ही जीवन साथी के हाथों शारीरिक और मानसिक हिंसा की शिकार हैं । 10 प्रतिशत महिलाएं तो ऐसी हैं जो गंभीर किस्म की यौन प्रताड़ना का दर्द भुगत रही हैं। सीबीआई की एक आंशका के अनुसार देश में सालाना 30 लाख लड़कियों की वैश्यावृत्ति के लिए तस्करी होती है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी माना है कि 5साल के अंदर देश में वैश्याओं की तादाद बढ़ कर दो गुनी हो गई है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक बलात्कार की वारदातों में मध्यप्रदेश देश में सबसे आगे है। देश में होने वाली इस किस्म की वारदातों में अकेले 16 प्रतिशत हिस्सेदारी मध्यप्रदेश की होती है। ऐसे में यहां बेशर्मी मोर्चे जैसे अभियानों को जमीन मिलना भी स्वाभाविक भी है। महिलाओं के हक और सम्मान के खिलाफ जंग के इस एलान में केंद्र में क्या होना चाहिए। पितृसत्तात्मक बहुरूपिया समाज सत्य है जहां शर्म तो स्त्रियों का आभूषण है लेकिन बेशर्मी भी पुरूषों का स्थाई चारित्र। महिला हिंसा । भेदभाव। घरेलू हिंसा। कामकाजी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और उत्पीड़न।देहज प्रताड़ना और दहेज हत्या। शारीरिक यातना के अलावा ऐसी मानसिक मार जिसके जख्म जिस्म पर तो नहीं दिखते लेकिन कलेजे पर जाकर पैबस्त हो जाते हैं। ऐसी मार जो सीधे मर्म पर मार करती है। जिसका कोई कानूनी दावा । सजा और हर्जाने की शक्ल में भरपाई नहीं है। घुट-घुट कर जीने की लाचारी है। यह कम सुखद नहीं कि एक एक अच्छी शुरूआत है प्रारूप भारतीय संस्कृति और संदर्भो पर ही केंद्रित रहना चाहिए। कोशिश यह भी होनी चाहिए कि यह अभियान अकेले एलीट वर्ग की आवाज बन कर न रह जाए। देश को भोपाल का यही संदेश है।

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