मंगलवार, 9 अगस्त 2011

कर्नाटक से कुछ तो सीखो

16 हजार 85 करोड़ के खनन घोटाले पर लोकायुक्त द्वारा राज्यपाल से मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश के बाद बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक की कुर्सी में बने रहने का अधिकार खो चुके थे। ऐसे में भाजपा के पास भी उनसे इस्तीफा लेकर लीडरशिप बदलने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं था,लेकिन राजनीति की तासीर ही कुछ इतनी बेशर्म है कि येदियुरप्पा दादागिरी दिखाना नहीं भूले। अब वह लोकायुक्त की रिपोर्ट को कानूनी चुनौती देने की तैयारी में हैं। देश के लिए यह पहला मौका है, जब लोकायुक्त ने किसी राज्य के मुख्यमंत्री को सीधे भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया है। संभवत: देश में अकेले कर्नाटक ही इकलौता ऐसा राज्य होगा जहां लोकायुक्त नख-दंत विहीन कागजी शेर नहीं है। लोकायुक्त संतोष हेगड़े की 26 हजार पन्नों की रिपोर्ट बताती है कि अकेले मुख्यमंत्री ही नहीं 4 मंत्रियों के साथ तकरीबन 6 सौ से भी ज्यादा अधिकारियों के ताकतवर नेटवर्क ने 3 साल के अंदर किस तरह से करोड़ों की संपदा लूटी। किस तरह से सौ से अधिक कंपनियां देश की बहुमूल्य संपदा को चोरी-छिपे सीधे चीन पहुंचा रही थीं। 4 लाख फाइलों और 50 लाख प्रविष्टियों की जांच से तैयार यह रिपोर्ट इस तथ्य का भी खुलासा करती है कि सियासी हमाम में आखिर सब कैसे नंगे होते हैं? क्या भाजपा और क्या कांग्रेस? खनन घोटाले में भाजपा के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को 30 करोड़ का लाभ पहुंचाने वाली साउथ वेस्ट माइनिंग कंपनी कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल के भाई सज्जन जिंदल की है और जिंदल परिवार के साथ कांग्रेस की यारी किसी से छिपी नहीं है। सज्जन के पिता ओपी जिंदल हरियाणा में कांग्रेस के मंत्री हुआ करते थे और मां सवित्री मौजूदा समय में भी हरियाणा सरकार में मंत्री हैं। येदियुरप्पा के इस्तीफे और उनके उत्तराधिकारी की तलाश की कवायद के बाद यह मानना जल्दबाजी ही होगी कि कर्नाटक का संकट अब समाप्त हो चुका है। असल में दक्षिण भारत में भाजपा की पहली और इस इकलौती सरकार के सामने अब असली संकट मुख्यमंत्री की एक अदद कुर्सी के लिए सामने आए आधा दर्जन से भी ज्यादा दावेदारों में से किसी एक को चुनने का है। सवाल यह है कि भाजपा के लिए कर्नाटक महत्वपूर्ण है या येदियुरप्पा का राजनीतिक वजूद? बेशक,कर्नाटक में भाजपा की सत्ता पार्टी के लिए नए युग की शुरूआत थी और इसमें भी शक नहीं कि भाजपा के लिए दक्षिण भारत में मार्ग प्रशस्त करने वाले कोई और नहीं यही येदियुरप्पा ही थे। शायद यही वजह है कि पार्टी हाईकमान नए मुख्यमंत्री के चयन के मामले में मुख्यमंत्री कम और येदियुरप्पा का उत्तराधिकारी चुनने की रणनीति पर ज्यादा काम कर रही है। वैसे इस मामले में मूल पेंच भाजपा हाईकमान के भीतर ही है। पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी येदियुरप्पा से जबरन इस्तीफा लेने के पक्ष में नहीं थे वह स्वयं येदियुरप्पा के इस्तीफा देने के पक्ष में थे लेकिन पार्टी बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज ने इसे नाक का सवाल बना लिया। कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े के करीबी माने जाने वाले आडवाणी असल में येद्दी की जगह अनंत कुमार की ताजपोशी भी चाहते हैं। लेकिन येदियुरप्पा अब ऐसा होने देंगे। आसार नहीं हैं। बेशक,कर्नाटक में भाजपा की अपनी मजबूरियां हैं। विधानसभा में उसका बहुमत मामूली है। येदियुरप्पा बगावत करते तो सत्ता हाथ से जाती। कर्नाटक में दो साल बाद चुनाव हैं। सिर पर मानसून सत्र सवार है लेकिन इतना तय है कि भ्रष्टाचार पर मानसून सत्र में कांग्रेस पर दबाव बनाने की खुशफहमी पाल कर बैठी भाजपा की कर्नाटक के संकट ने हवा निकाल दी है।
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