मंगलवार, 9 अगस्त 2011
मगर,नहीं मानेगी महंगाई
कोई कितने ही जतन क्यों न कर ले महंगाई हार मानने वाली नहीं है। महंगाई नियंत्रण पर भारतीय रिजर्व बैंक के कठोर मौद्रिक उपाय हों या फिर सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता। पूरी दुनिया में हावी खराब आर्थिक हालात और आने वाले दिन भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं। जाहिर है,इसके असर से भला भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था अछूती कैसे रह सकती है? ऐसे में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का यह पूर्वानुमान हरगिज गले नहीं उतरता कि साल के अंत तक अंतत: महंगाई काबू में आ जाएगी। देश के ताजा आर्थिक हालात पर यह रिपोर्ट तब आई है,जब आम आदमी की जान पर बन आई महंगाई के सवाल पर संसद के मानसून सत्र में शोलों की बरसात हो रही है। पेट्रोल की तरह रसोई गैस, डीजल और केरोसिन को भी नियंत्रण मुक्त कर एक मर्तबा फिर से दाम बढ़ाने की कोशिशों में जुटी केंद्र सरकार के आर्थिक सलाहकार अगर 4 माह के अंदर महंगाई दर गिराकर 6.5 कर लेने का दावा करते हैं तो वह सिर्फ भ्रम के आंकड़े परोस रहे हैं। सच तो यह है कि बेदम आर्थिक नीतियों के चलते बेलगाम हुई महंगाई को काबू में लाने के लिए सरकार और आरबीआई को अब न तो कोई उपाय सूझ रहा है और न ही उसके आर्थिक सलाहकारों को ही कुछ समझ में आ रहा है। ऐसे में इतना साफ है कि कठोर मौद्रिक उपाय जारी रहने से ऊंची ब्याज दरों को यूं ही भुगतना होगा और आम उपभोग की जरूरी खाद्य वस्तुओं के लिए आगे अभी और भी ज्यादा कीमतें चुकानी होंगी। संभव है मानसून सत्र से फुर्सत होते ही सरकार रसोई गैस, डीजल और केरोसिन को नियंत्रण मुक्त करने का फैसला लेकर मूल्य निर्धारण बाजार के हवाले कर दे। यदि ऐसा हुआ तो देश की एक बड़ी आबादी के सामने दो जून की रोटी का एक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। वैश्विक स्तर पर यह एक सिर्फ सरकारी खुशफहमी हो सकती है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में अभूतपूर्व आर्थिक तंगी के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की 8.2 फीसदी की रफ्तार बेहतर है। असल में इस कागजी आंकड़े का आमआदमी की मुश्किलों से कोई वास्ता नहीं है। यहां एक सत्य यह भी है कि सस्ते पेट्रो पदार्थो की सहज उपलब्धता के मामले में हम एक खामोश खतरे की ओर तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। आज नहीं तो कल अमेरिकी दबाव के चलते भारत के साथ ईरान के तेल सौदे का दुखांत तय है। सऊदी अरब के बाद ईरान ऐसा दूसरा बड़ा देश है, जो भारत को कच्चे तेल की कुल जरूरत का 12 प्रतिशत आयात करता है। लेकिन अमेरिकी इशारे पर भारत ने ईरान के खिलाफ न केवल आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं बल्कि 7 माह से तेल खरीदी के मद में5 अरब डॉलर का भुगतान भी प्रतिबंधित कर दिया है। ईरान के खिलाफ भारत असल में अमेरिका के साथ इतना आगे बढ़ चुका है, जहां से ईरान की ओर लौटने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। अमेरिका के प्रति भारत का यह पिछलग्गूपन आज नहीं तो कल भारत में गंभीर पेट्रो संकट का खामोश खतरा है। क्योंकि तब कच्चे तेल पर भारत की पूरी निर्भरता अरब देशों पर स्थिर हो जाएगी। आर्थिक मोर्चे पर भारत की यह कूटनीतिक विफलता बहुत मंहगी पड़नेवाली है।
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