सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की फर्जी प्रोफाइल के मामले में एमपी पुलिस अभी किसी ठोस नतीजे पर पहुंची भी नहीं थी कि यू टय़ूब में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विवादास्पद वीडियो ने पुलिस की नींद उड़ा दी। सीएम के नाम पर प्रदेश में साइबर क्राइम का यह पहला मामला है। साइबर सेल के आईजी राजेंद्र कुमार कहते हैं,जांच जारी है,लेकिन सवाल यह है कि अंतत: अंजाम क्या होगा? सच तो यह है कि साइबर क्राइम के केस कोर्ट में साबित करना तो दूर अपराधी को ट्रेस कर पाना तक संभव नहीं है। साइबर क्राइम कितना सुरक्षित है, इस बात का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि जब पुलिस ने फेसबुक मुख्यालय से जानकारी चाही तो निजता भंग होने की कानून आड़े आ गया। हार कर पुलिस को इंटरपोल की मदद लेनी पड़ी और तब कहीं इंदौर के वो दो नाबालिग छात्र पकड़ में आए जिन्होंने ये शरारत की थी। सवाल यह भी है कि अगर यह सीएम से सीधे जुड़ा हाईप्रोफाइल मामला नहीं होता तो क्या फेसबुक के इस फर्जी प्रोफाइल मामले में मध्यप्रदेश पुलिस इंटरपोल तक जाती? कहने को तो साइबर सेल भी सक्रिय है लेकिन सच यह है कि राज्य के इंदौर,उज्जैन और रतलाम में साइबर क्राइम के खिलाफ मॉडल सिटी का प्रस्ताव फाइलों में ही फंस कर रह गया है। नेशनल साइबर सिक्योरिटी एलायंस इंडिया(एनसीएसए)ने देश के 6 राज्यों के 17 शहरों को इसके लिए चिन्हित किया था ,जहां साइबर अपराध के खिलाफ पुलिस को न केवल प्रशिक्षित किया जाना था बल्कि ऐसे अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर भी उपलब्ध कराए जाने थे जो अपराधों का विश्लेषण कर सकें। आमतौर पर साइबर क्रिमिनल इतने सतर्क और दक्ष होते हैं कि पलक झपकते ही क्राइम के फुट-फ्रिंगर प्रिंट मिटा देते हैं ,जबकि इसके मुकाबले ना तो पुलिस में इतनी विशेषज्ञता है और नाही वह तकनीकी तौर पर मजबूत है। ऐसे में अपराधी कब-किसकी ऑनलाइन इज्जत उतार दें, कुछ कहा नहीं जा सकता है? यह अकेले मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश की विडंबना है। सिमेंटेक को आशंका है कि देश के लगभग 76 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ता किसी न किसी रूप में साइबर क्राइम के शिकार हैं। यह अपराध सालाना 50 प्रतिशत की गति से बढ़ रहा है। तीन साल में 9 हजार भारतीय वेबसाइट हैक हो चुकी हैं। अमेरिकन की सुरक्षा एजेंसी एफबीआई का भी मानना है कि दुनिया में भारत साइबर क्राइम का पांचावा सबसे बड़े शिकार है। देश के लिए हैकिंग के खतरे कितने संवेदनशील हैं अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल दिसंबर में चीनी हैकर्स ने अति सुरक्षित माने जाने वाले पीएमओ कार्यालय के कंप्यूटर हैक कर लिए । देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, कैबिनेट सचिव, और प्रधानमंत्री के विशेष दूत के निजी कंप्यूटरों तक में सेंधमारी हुई। मई 2008 चीनी हैकरों ने विदेश मंत्रलय की वेबसाइट हैक कर ली थी। 1998 में देश में पाकिस्तान की ओर से पहला साइबर अटैक पोखरण में परमाणु परीक्षण के दौरान हुआ था जब हैकर्स ने भारतीय मीडिया की वेबसाइट्स हैक कर ली थी। 1999 में आर्मी की साइट के अलावा 2001 में संसद अटैक और 26/11 में मुंबई हमले के दौरान भी सरहद पार बैठे हैकर्स ने ऐसे ही हमले किए थे। नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज (नैसकॉम)और सीबीआई की साइबर सेल की साझा कोशिशों के बाद भी भारतीय डॉटा सुरक्षा परिषद (डीएससीआई)लाचार है। देश अपनी डॉटा प्रणाली तक सुरक्षित नहीं है। यहां गौर तलब तथ्य यह भी है कि बतौर इंटरनेट यूजर भारत पूरी दुनिया में चौथे नंबर पर है। ऑरकुट में विश्व में इसका दूसरा स्थान है। देश में सोशल नेटवर्किग साइट्स के 250 लाख यूजर हैं। दो साल पहले यही तादाद महज 30 लाख थी। 90 प्रतिशत यूजर 16 से 40 साल के हैं। विश्व के कुल14 करोड़ फेसबुक यूजर्स में से अकेले पौने 2 करोड़ भारतीय हैं। एक अनुमान के अनुसार दुनिया के कुल फेसबुक यूजर्स में से1 करोड़ फर्जी हैं। जालसाजों की यह जमात कब गुल खिला दे कुछ कहा नहीं जा सकता है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें