क्या राजधानी भोपाल को वास्तव में मेट्रो रेल की जरूरत है? क्या यहां इसकी संभावनाएं मौजूद हैं? आखिर कैसे साकार होगा मेट्रोरेल का सपना? अंतत: इन उत्सुकता भरे तमाम सवालों को गिराते हुए मेट्रो मैन और दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड(डीएमआरसी) के एमडी डॉ.ई श्रीधरन ने साफ कर दिया कि यह राज्य शासन का सही समय पर लिया गया दूरदर्शी निर्णय है। वास्तव में डीएमआरसी के फीजिबिलिटी सव्रे ने भोपाल में मेट्रो रेल के सपने को साकार करने की बुनियाद रख दी है। राजधानी भोपाल की तरह प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर को भी ग्रीन सिगनल मिलना भी सुखद है। इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि राज्य के भोपाल,इंदौर,ग्वालियर और जबलपुर जैसे महानगरों समेत कोई भी नगर, नियोजन के पैमाने की कसौटी पर खरा नहीं है। जरा सी बरसात में राजधानी का अनियंत्रित यातायात बताता है कि नगरीय निकाय अब तक जल निकासी जैसे जरूरी प्रबंध तक नहीं कर पाया है। इंदौर हो या भोपाल दोनों महानगरों में जहां तेजी के साथ आबादी का दबाव बढ़ रहा है, वहीं इनके विस्तार में भी तेजी आई है। दोनों की शहरी बसाहट भी कुछ ऐसी है कि अब यातायात को नियंत्रित और व्यवस्थित कर पाना संभव नहीं है। बायपास और नो पार्किग जोन जैसे वैकल्पिक उपाय भी अब अल्पकालिक हो चुके हैं। यह कहना अनुचित नहीं कि इसके विपरीत राज्य के महानगरीय अधोसंरचना विकास,आवासीय प्रबंध और नगरीय यातायात के विकास के लिए किसी दीर्घकालिक योजना पर कभी गंभीरता के साथ विचार नहीं किया गया है। नतीजा यह है कि अभी भी राजधानी में मेट्रो रेल परियोजना की सबसे बड़ी तकनीकी और व्यावहारिक बाधा सिटी मोबेलिटी प्लान और कंप्रेहेन्सिव ट्रांसपोर्ट प्लान का अभाव है। ये वो कार्ययोजना है जो मेट्रो रेल से संबंधित मार्गो,मानकों और जरूरतों के निर्धारण में मददगार साबित होती। अब ये वहीं बाधाएं हैं जो आज नहीं तो कल डीपीआर(डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करने के दौरान डीएमआरसी के सामने मुश्किलें खड़ी करेंगी। कहना न होगा कि राज्य में नगरीय विकास के लिए अब तक व्यवहारिक निर्णय नहीं लिए जानें की ऐसी ही भूलों के मद्देनजर मेट्रो ट्रेन परियोजना भूल सुधार का एक अहम उपाय कही जा सकती है। बेहतर पार्किग प्रबंधन,सुगम माल परिवहन और तेज रफ्तार सड़क यातायात के बीच सुरक्षित सफर के लिए भूमिगत मेट्रो रेल सर्विस वास्तव में न केवल वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है अपितु समय पर लिया गया एक दूरदर्शी फैसला भी है। इस सुविधा से पर्यावरण के भी अपने अनगिनत फायदे हैं। राज्य के सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाले इंदौर-भोपाल को आबादी के दबाव से बचाने के लिए शासन स्तर पर छोटे नगरों में रोजगार मूलक अधोसंरचना के विकास की भी कारगर रणनीति बनानी होगी। बेहतर हो यह रणनीति कम से कम 20 वर्षीय पूर्वानुमानों के आकलन पर केंद्रित हो। मध्यप्रदेश में 20.3 प्रतिशत की गति से बढ़ रही जनसंख्या दर के दौरान राज्य के इंदौर-भोपाल जैसे शहरों में आबादी का 32.7 फीसदी की दर से बढ़ना एक बड़े खतरे की ही घंटी है।
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