मंगलवार, 23 अगस्त 2011

मध्यप्रदेश में विश्व स्तरीय पर्यटन की संभावनाएं


सिंगापुर के आईलैंड किसको नहीं लुभाते हैं। मध्यप्रदेश के इंदिरागांधी परियोजना क्षेत्र के नैसर्गिक टापुओं में मध्यप्रदेश सरकार, निजी क्षेत्र की भागीदारी से ऐसे ही आईलैंड को विकसित करने के अद्भुत सपने देख रही है। असल में देश में फारेस्ट स्टेट का दर्जा प्राप्त मध्यप्रदेश को कुदरत ने सौगात में ऐसी प्राकृतिक संपदाएं सौंपी हैं ,जो सचमुच उसे विश्वधरोहर की श्रेणी में रखती है। झीलों और शैलशिखरों से समृद्ध इस प्रदेश का विशाल ग्रामीण फलक टूरिज्म का एक ऐसा जादुई त्रिकोण बनाता है ,जो राज्य के हर संभाग को न केवल पर्यटन का मेगा सर्किट बना सकता है बल्कि उसे देश-विदेश के टूरिज्म सर्किट से जोड़ कर देश के सामने टूरिज्म स्टेट का मॉडल भी पेश कर सकता है। असल में मध्यप्रदेश के 80 प्रतिशत पर्यटन केंद्र ग्रामीण इलाकों में स्थित हैं। ईको पर्यटन विकास बोर्ड बनाने वाले देश के इस सर्वप्रथम प्रदेश की भौगोलोगिक स्थिति ही कुछ ऐसी है जो ईको और ग्रीन टूरिज्म के साथ-साथ वाइल्ड लाइफ और एडवेंचर टूरिज्म के व्यावसायिक विकास के भी तमाम रास्ते बनाती है। यह अतिशयोक्ति नहीं कि मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं।
संस्कृतियों का संगम मध्यप्रदेश : देश के दिल मध्यप्रदेश के ग्राम्य जीवन से तमाम ऐसे अनछुए और अव्यावसायिक पर्यटन स्थलों की लंबी फेहरिस्त जुड़ी है जो बरबस रोमांचित करती है। पांच लोक संस्कृतियों के समावेशी संसार मध्यप्रदेश का लोकजीवन, साहित्य, संस्कृति, कला, बोली और परिवेश ही नहीं अपितु जनजातियों की आदिम संस्कृति का विशाल फलक विदेशी सैलानियों को सदैव लुभाता रहा है। विंध्य - सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखलाएं इसे जहां नैसर्गिक बनाती हैं,वहीं नर्मदा समेत 6 बड़ी नदियों के उद्गम इसे और भी विहंगम बनाते हैं। कालिदास और तानसेन। कला,शिल्प और अद्भुत स्थापत्य। राजतंत्र का वैभवशाली इतिहास। प्रदेश में वैभवपूर्ण पर्यटन को और भी आश्चर्यजनक बनाता है।
भारत का जुरासिक खजाना : मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी क्षेत्र में अनमोल जुरासिक खजाना बिखरा पड़ा है। पश्चिमी मध्यप्रदेश के धार जिले के 90 हेक्टेयर में 4 करोड़ की शुरूआती लागत से राष्ट्रीय डायनासोर जीवाश्म उद्यान बनाने की सरकारी योजना प्रस्तावित है। भारतीय भू-गर्भ सर्वेक्षण (जीएसआई) के अध्ययन के अनुसार यहां वर्ष 2007 में डायनोसोर के सौरोपॉड परिवार के 150 से भी ज्यादा अंडो के जीवाश्म की खोज की गई थी। इस इलाके में साढ़े छह करोड़ साल पहले क्रि टेसियस काल 20-30 फुट ऊंचे शाकाहारी डायनासोरों की सल्लतनत हुआ करती थी।
विश्व में भित्तिचित्रों का सबसे बड़ा संग्रह: विंध्य पर्वत श्रृंखला के उत्तरी छोर में स्थित भीमबैठका की पाषाणयुगीन सैकड़ों अद्भुत गुफाएं ,जिसमें आदिमानव द्वारा निर्मित 6 सौ से भी ज्यादा भित्ति चित्रों का यह संग्रह संसार में पाए गए पाषाणकालीन भित्तिचित्रों का सबसे बड़ा संग्रह है। भृतहरि,उदयागिरी और गुप्तगोदावरी की प्राचीन प्राकृतिक गुफाएं कुदरती की पच्चीकारी का अनूठा उपहार हैं। जो विश्वधरोहर का दर्जा हासिल करने की दावेदार हैं।
व्हाइट टाइगर का घर: दरुलभ व्हाइट टाइगर से रूबरू होने का रोमांच आज भी यहीं है। सफेद शेर के घर बांधवगढ़ और टाइगर रिजर्व मोगली सेंच्युरी पेंच जैसे आधा दर्जन से भी ज्यादा सदाबहार नेशनल पार्क भी यहीं हैं। सिगरौली में काले हिरणों का अभयारण्य। सोन और चंबल के घड़ियाल अभ्यारण्य और पन्ना मेंअनमोल हीरे की खदानें देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं। बरगी,तवा और भोपाल की अपरलेक पर क्रू ज वोट की संभावनाएं भी मौजूद हैं। इतना ही नहीं अमरकंटक, मांडू,ओरक्षा,ग्वालियर,चंदेरी, मैहर,चित्रकूट , महाकालेश्वर,ओंकारेश्वर और भोजपुर। प्रदेश में वैभवपूर्ण पर्यटन की फेहरिस्त बड़ी लंबी है।
विश्व की सबसे प्राचीन ईमारत और खजुराहो : सैंड स्टोन से बनी भारत की सबसे प्राचीन ईमारत सांची के स्तूप राजधानी भोपाल से 45 किलोमीटर दूर स्थित हैं। जिन्हें सम्राट अशोक ने स्वयं बारहवीं शताब्दी में बनवाया था। जबलपुर से दूर भेड़ाघाट में नर्मदा किनारे सौ-सौ फीट ऊंची संगमरमर की चट्टानें सैलानियों को अचंभित कर देती हैं। कभी अंग्रेजों की ग्रीष्म कालीन राजधानी रही पहाड़ों की रानी पचमढ़ी प्रदेश का मशहूर हिल स्टेशन है। मैथुन मूर्तियों और स्थापत्य कला के लिए विश्व में मशहूर चंदेल कालीन खजुराहो के मंदिर आज भी पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
इंटरनेशनल एयरपोर्ट: राजधानी भोपाल का राजाभोज एयरपोर्ट अब इंटरनेशनल टर्मिनल से लेस है। भोपाल से दिल्ली-मुंबई समेत देश के 8 शहरों के लिए हवाई सेवा उपलब्ध है। सीधी अंतरराष्ट्रीय उड़ान सेवा हाल ही में उपलब्ध करा दी गई। राजधानी भोपाल के अलावा मिनी मुंबई के नाम से मशहूर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर , संस्कारधानी जबलपुर और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के साथ-साथ एतिहासिक शहर ग्वालियर भी विमान सेवा से जुड़े हुए हैं।
एयर टैक्सी: सामरिक लिहाज से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रदेश के तमाम बड़े शहरों में बनाई गई हवाई पट्टियों को विकिसत कर इन्हें निकटतम हवाई अड्डों से जोड़ा जा सकता है। राज्य में हवाई सेवा के विस्तार के लिए भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने देश के जिन 35 हवाई अड्डों के विस्तार की योजना बनाई है, उनमें प्रदेश के भोपाल,इंदौर, खजुराहो और जबलपुर भी शामिल हैं। भोपाल के नेशनल एयरपोर्ट का विस्तार कार्गो कॉम्लेक्स के रूप में किया जा रहा है।
तेजी से बढ़ रहे हैं सैलानी: मध्यप्रदेश सरकार के पर्यटन विकास निगम के अनुसार प्रदेश के 80 प्रतिशत पर्यटन स्थल ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। जहां पहुंच का संकट नहीं है। ये स्थल या तो रेल मार्गो से जुड़े हैं या फिर राष्ट्रीय और राज्यमार्गो से इन्हें जोड़ा गया है। शहरी पर्यटन के मुकाबले देशी-विदेशी सैलानियों का रूझान ग्रामीण इलाकों में स्थित पर्यटन केंद्रो के प्रति ज्यादा है। मिसाल के तौर पर पिछले साल राज्य के बड़े शहरों के पर्यटक केन्द्रों पर 63 लाख 50 हजार 183 पर्यटक पहुंचे। इनमें से 61 लाख 13 हजार 503 भारतीय तथा 2 लाख 36 हजार 680 विदेशी पर्यटक थे। इसके अलावा इस दौरान धार्मिक स्थलों पर 31 करोड 9 लाख 79 हजार 842 पर्यटक आए। इनमें 31 करोड 9 लाख 66 हजार 92 भारतीय तथा 13 हजार 750 विदेशी पर्यटक शामिल थे । जबकि इसके विपरीत पिछले साल ही ग्रामीण क्षेत्र में स्थित ओरछा में 12 लाख 68 हजार पर्यटक पहुंचे। इनमें 12 लाख 26 हजार भारतीय तथा 42 हजार 300 विदेशी पर्यटक थे। जबकि 7 लाख 60 हजार 683 पर्यटक मांडव पहुंचे। जिनमें 7 लाख 53 हजार 712 भारतीय तथा 6,971 विदेशी पर्यटक थे। इसी समयावधि में एक करोड़ 13 लाख 651 पर्यटक चित्रकूट आए। इनमें एक करोड़ 13 लाख 306 भारतीय तथा 345 विदेशी थे। मैहर में 72 लाख उज्जैन में साढ़े 36 लाख पर्यटक पहुंचे। देश की राजधानी दिल्ली और विश्व के लिए भारत में स्थित सबसे बड़े टूरिज्म प्वाइंट आगरा से हवाई सेवा से जुड़े खजुराहो में रोज 5 सौ के करीब विदेशी और एक हजार से भी ज्यादा देशी पर्यटक पहुंचते हैं।
निजी पूंजी निवेश और जनभागीदारी: हजार संभावनाओं के बाद भी इतना तय है कि मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्थित अंतरराष्ट्रीय स्तर के पर्यटन अपार संभावनाओं का व्यावसायिक विकास अकेले मध्यप्रदेश सरकार से संभव नहीं है। सरकार ने इसे लिए अपनी इनवेस्टर समिट स्कीम के तहत निजी पूंजी निवेश की रचनात्मक पहल की है। ग्रामीण पर्यटन स्थलों को राष्ट्रीय और राज्य मार्गो से सीधे जोड़े जाने का काम भी प्रदेश में बड़ी तेजी के साथ चल रहा है। सरकार इन क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्ययोजनाओं पर काम कर रही है। निजी पूंजी निवेश और जनभागीदारी से यदि ऐसा संभव हो पाया तो न केवल मध्यप्रदेश, विश्व के पर्यटन मानचित्र में खुद को स्थापित करने में सफल रहेगा अपितु प्रदेश की कुल श्रमशक्ति में से अकेले 6 प्रतिशत श्रमशक्ति के लिए स्थानीय स्तर पर ही रोजगार के अवसर भी उपलब्ध हो जाएंगे। इन अंचलों में रोजगार के अवसर नहीं होने के कारण श्रमशक्ति के लिए आउटसोर्सिग की भी आवश्यकता नहीं है।

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