शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

भारत से भयभीत अमेरिका


वैश्विक मंदी के बीच संतुलित भारतीय अर्थव्यवस्था से अगर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अभिभूत हों और उनके वजीरे खजाना टिमोथ गेटनर गदगद..तो भारत सरकार के वित्तीय रणनीतिकारों को खुशफहमी पालने के बजाय सतर्क हो जाना चाहिए। भारतीय अर्थव्यवस्था का गुणगान करने वाले ये वही ओबामा हैं, जिन्होंने एक ओर अमेरिका को अभूतपूर्व मंदी से उबारने के लिए भारत से मदद मांगी तो दूसरी ओर आउट सोर्सिग के सवाल पर भारत को झटका देने में देर नहीं की। असल में विश्व के पटल पर तेजी के साथ मजबूत होती भारतीय अर्थव्यवस्था से अमेरिका भयभीत है। देश की अर्थव्यवस्था अब एक खरब डॉलर वाली हो गई है। विदेशी मुद्रा कोष 132अरब डॉलर के पार जा चुका है। अंदर की बात तो यह है कि अमेरिका को भारत से आर्थिक महाशक्ति के तख्ता पलट का खतरा नजर आने लगा है। अमेरिका की तर्ज पर अब ब्रिटेन भी जहां आउट सोर्सिग के लिए भारत के दरवाजे बंद करने की तैयारी में है,वहीं चालाक चीन की भी पल-पल पर नजर है। आर्थिक सुधारों और विकास के सवाल पर विश्व के सामने किसी जादुई करिश्मे की तरह रोल मॉडल बन कर उभरे भारत को अस्थिर कर असल मुद्दे से भटकाने के लिए ये वैश्विक शक्तियां कभी भी कूटनीतिक हथियारों का इस्तेमाल कर सकती हैं। असल में अंदर से बौखलाए अमेरिका की सबसे बड़ी फिक्र भारतीय प्रतिभाओं की स्वदेश वापसी है। विश्व की सुप्रसिद्ध मानव संसाधन सलाहकार संस्था माफोई रेडोस्टेंड के ताजा अनुसंधान की मानें तो एक साल के अंदर भारतीय प्रतिभाओं की स्वदेश वापसी में 15 फीसदी का इजाफा हुआ है। अमेरिका किसी भी हालत में दुनिया के सबसे योग्य भारतीय प्रवासियों को खोना नहीं चाहता है ,लेकिन भारत के इतिहास में शायद यह पहला दौर है जब विश्व की अर्थव्यवस्था में अविस्मरणीय योगदान देने वाली प्रतिभाएं अब भारत के बहुमुखी विकास के संकल्प के साथ स्वदेश लौट रही हैं। कभी प्रतिभा पलायन के संकट से जूझ रहे भारत जैसी हालत आज अमेरिका की है। माना जा सकता है कि भारतीयों के लिए आउट सोर्सिग के रास्ते बंद करने का अमेरिकन फैसला ऐसी ही किसी बौखलाहट का नतीजा है। अमेरिका अपने एक बड़े इस आसन्न नुकसान से अनभिज्ञ नहीं है। वह कैसे भूल सकता है कि विश्व के केपीओ (नॉलेज प्रोसेसिंग आउट सोर्सिग)सेक्टर में आज भारत की भागीदारी 70 प्रतिशत के करीब है। बेशक,आज अगर भारतीय ग्लोबल लेबल पर नॉलेज हब बन गए हैं, तो इसके पीछे सिर्फ एक वजह यह है कि सस्ती दर पर पूरी दक्षता के साथ काम की गुणवत्ता समूची दुनिया में अकेले भारत और भारतीयों में ही संभव है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विश्व के विकसित देश आज भारत के लिए भले ही आउट सोर्सिग के रास्ते बंद कर दें ,लेकिन वे आउट सोर्सिग के लिए अपनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारत आगमन के रास्ते बंद करने की हालत में नहीं हैं। अमेरिका हो या यूरोप विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के दौरान पूरी दुनिया विकासशील और संतुलित अर्थव्यवस्था का करिश्मा देख चुकी है। संसार यह समझ चुका है कि विपरीत परिस्थितियों के बीच अगर भारतीय अर्थव्यवस्था संतुलित है, तो इसके पीछे का रहस्य भी भारतीय प्रतिभाओं का आर्थिक प्रबंधन ही है।

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