दस सालों में मप्र के करीब सवा फीसदी लोग गांवों से निकलकर शहरों में बस गए हैं। प्रदेश में शहरों की संख्या में 82 का इजाफा हुआ है, जबकि 490 गांव कम हो गए। हालांकि राज्य के अब भी सवा पांच करोड़ (72.37 फीसदी) लोग गांवों में ही निवास करते हैं और शहरों में दो करोड़ लोग रहते हैं। मप्र के संबंध में जनगणना 2011 के अंतरिम आंकड़े ऐसा ही कहते हैं। प्रदेश की एक तिहाई शहरी आबादी (करीब 70 लाख) चार जिलों इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में रहती है। इसमें इंदौर शीर्ष पर है जहां 24 लाख लोग शहरी हैं। दूसरे नंबर पर भोपाल जिला है, जहां 19 लाख लोग शहरों में रहते हैं। ग्रामीण आबादी में रीवा, धार और सतना जिले शीर्ष तीन पर स्थानों पर हैं। कुछ गांव शहरों में परिविर्तत हो गए। उदाहरण के तौर पर जैसे भोपाल जुड़ा कोलार क्षेत्न पहले गांव कहलाता था लेकिन अब नगर पालिका क्षेत्न में आने के कारण वह शहर में तब्दील हो गया। कई गांव बांध इत्यादि परियोजनाओं के कारण डूब में आ गए। उदाहरण के तौर पर जैसे इंदिरा सागर परियोजना में 156 और ओंकारेश्वर परियोजना में 5 गांव डूब गए। पलायन के कारण ग्रामीण क्षेत्न के लोग शहरों में बस गए। इससे शहरों में आबादी बढ़ गई कुछ गांव शहरी क्षेत्न की परिभाषा में शामिल हो गए। इससे अपने आप यह आबादी शहरी आबादी में जुड़ गई। ऐसे क्षेत्न जहां नगरपालिका, नगर निगम, छावनी क्षेत्न हो या फिर वह शहर के रूप में अधिसूचित हो, शहर कहलाते हैं। इनके अलावा वे स्थान भी शहर कहलाते हैं, जो इन तीन मानदंडों को पूरा करते हों : न्यूनतम पांच हजार की आबादी, वहां के 75 फीसदी कामकाजी पुरु ष गैर कृषि कार्यो में संलगन हों और जनसंख्या का घनत्व न्यूनतम 400 वर्ग किमी हो।
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