मंगलवार, 26 जुलाई 2011

भारत रत्न: खेलधर्म और धर्मसंकट



खेल के क्षेत्र में भारत रत्न का रास्ता साफ होने के बाद समर्थकों की शक्ल में फिलहाल इसके दो दावेदार सामने हैं। एक क्रिकेट के मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और दूसरे हैं ,राष्ट्रीय खेल हॉकी के जादूगर स्वयर्गीय ध्यानचंद। इसमें शक नहीं कि क्रिकेट परदेशी खेल होने के बाद भी आज लगभग राष्ट्रीय धर्म बन गया है। इसके लाखो लाख अनुयायी हैं और सचिन तेंडुलकर इन्ही अनुयायियों के लिए क्रिकेट के भगवान हैं लेकिन खेल के क्षेत्र में इस प्रतिष्ठा पूर्ण प्रथम भारत रत्न की दावेदारी का एक और पक्ष भी है। ध्यानचंद के समर्थन में खड़े मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राय में कम से कम खेल जगत का पहले भारत रत्न पर तो मेजर ध्यानचंद का ही असली अधिकार है। इसका आशय यह नहीं कि महान क्रिकेटर सचिन इसके हकदार नहीं हैं। इस मसले पर मुख्यमंत्री या फिर ध्यानचंद समर्थकों के अपने निहितार्थ हो सकते हैं, मगर इतना तय है कि अगर यह मांग जोर पकड़ती है तो देश के प्रति सचिन की जिम्मेदारी संवेदनशीलता की हद तक बढ़ सकती है। यह वही नाजुक अवसर होगा जब इस मामले में सियासी सक्रियता के खतरे बढ़ेंगे। क्या ,ऐसी सूरत में विश्व के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भारत रत्न के लिए ध्यानचंद के नाम का प्रस्ताव करने का साहस जुटा पाएंगे? देश में उनके लाखों लाख समर्थक अगर उन्हें क्रिकेट का भगवान मानते हैं तो क्या राष्ट्रीयता के प्रति उनके इस बलिदान से देश को एक अच्छा संदेश नहीं जाएगा? बेशक, ऐसा कर वह क्रिकेट में अपने कृतित्व के ही नहीं अपितु व्यक्तित्व से भी भगवान होने की पुष्टि कर सकते हैं। दुनिया को एक ऐसा संदेश दे सकते हैं, जैसा जवाब आज से 75 साल पहले जर्मनी के तानाशाह हिटलर को ध्यानचंद ने दिया था। बहुत कम लोग जानते हैं कि 1936 में बर्लिन ओलपिंक में जब भारत ने जर्मनी को 8-1 से रौंद दिया तो इस खेल के चश्मदीद हिटलर ने ध्यानचंद के सामने जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव रखा। बदले में जर्मन सेना में जनरल बना देने का प्रलोभन भी था। यह वह दौर था जब भारत गुलाम था और जर्मनी दुनिया का दूसरा सबसे शक्तिशाली राष्ट्र ,लेकिन ध्यानचंद को पद,पैसा और प्रतिष्ठा नहीं डिगा पाए। कहते हैं, देश और खेल को समर्पित ध्यानचंद ने हिटलर से दो टूक कहा कि मैं भारतीय हूं और सिर्फ भारत के लिए खेलूंगा। सचिन को क्रिके ट का भगवान मानने वाली आज की पीढ़ी संभव है ध्यानचंद से अपरचित हो,लेकिन यह वस्तुत: देश के प्रति उनका अतुलनीय और निरपेक्ष योगदान था। कहना न होगा कि क्रिकेट में बेमिसाल सचिन इसी बहाने अपने उन चंद विरोधियों की भी जबान बंद कर सकते हैं ,जो गाहे-बगाहे उनकी राष्ट्रीय निरपेक्षता और समर्पण पर सवाल उठाते रहे हैं। उन पर आरोप लगते रहे हैं कि वह सिर्फ अपने लिए खेलते हैं ऑस्ट्रेलियाई क्रि केटर सर डॉन ब्रेडमैन की सेंचुरी के कीर्तिमान की बराबरी करने पर इटली की कार कंपनी फिएट से गिफ्ट में मिली फेरारी कार का टैक्स बचाने की कोशिश रही हो या फिर साउथ अफ्रीका के दौरे के दौरान पोर्ट एलिजाबेथ में दूसरे टेस्ट मैच में बॉल टैम्परिंग की तस्वीर का कैमरे में कैद होना । टेस्ट मैच खेलने पर पाबंदी और या फिर ट्वेंटी-20 से बचने और आईपीएल जरूर खेलने के आरोप। यह देश के प्रति उनकी निरपेक्षता को साबित करने का बड़ा अवसर है। क्या, खिलाड़ी होने के नाते सचिन का यही खेल धर्म नहीं है। क्या खेल का धर्म देश को एक बड़े धर्मसंकट से बचाना नहीं है?

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