गुरुवार, 21 जुलाई 2011

दिग्गी राजा के राज?


मुंबई। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्नी और अब कांग्रेस के महासचिव की जिम्मेदारी निभा रहे दिग्विजय सिंह इन दिनों अपने राजनीतिक बयानों, कथनों और चुटकियों से एक तरह का आंदोलन छेडे हुए हैं। वे हर मुद्दे पर बोलते हैं, बहुत ही संक्षिप्त बोलते हैं; लेकिन उससे विवाद बडा खडा कर देते हैं। आखिरवे ऐसे ही मुद्दे क्यों उठाते हैं, जिनसे विवाद पैदा होता है? यह जानने के लिए हमें दिग्विजय की पृष्ठभूमि में जाना होगा। दिग्विजय सिंह दरअसल गुना जिले के राघोगढ रियासत में पैदा हुए राजपूत हैं, लेकिन अब उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है। एक ईसाई होकर इस तरह कांग्रेस की ओर से हिंदू संगठनों के खिलाफ मोर्चा खोलना उनकी राजनीति का ही एक अंग है। 22 बरस की ही उम्र में राजनीति में उतरनेवाले दिग्विजय 1977 में ही कांग्रेस की ओर से विधायक बन गए थे। वे अगले तीन बरसों में ही मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्नी बन गए और 1985 में वे मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गए। सन 1984 और 1991 में सांसद बने और 1993 और फिर 1998 में वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्नी रहे। मध्य प्रदेश में उनका कार्यकाल भी काफी विवादों से भरा रहा। उनका पहला सत्न तो राज्य को विकास की राह पर बडी तेजी से आगे ले गया, लेकिन दूसरे सत्न में उनकी सरकार भ्रष्टाचार और धांधलियों के आरोपों से घिर गई और 2003 में वे चुनाव हार गए। उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि अगर वे यह चुनाव हार जाते हैं तो अगले दस बरस तक कोई चुनाव नहीं लडेंगे, और दिग्विजय आज तक उस वादे को निभा रहे हैं। दिग्विजय पर 2001 में एक शराब व्यापारी से दस करोड रु पए की रिश्वत लेने का आरोप है। झबुआ में हुए नन बलात्कार पर भी उन्होंने हिंदू संगठन पर आरोप लगाया था, जो विवाद का केंद्र बना था। 2004 में इंदौर के एक भूमि घोटाले से भी उनका नाम जुडा था और उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। 2009 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्नी मायावती के खिलाफ टिप्पणी करने के खिलाफ उन पर मामला दर्ज किया गया था। 2009 में ही इंदौर के मॉल निर्माण में धांधली का मामला सामने आया और उसमें भी दिग्विजय का नाम था। यहां भी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य की आर्थिक अपराध शाखा को दिग्विजय पर धांधलियों के लिए मामला दर्ज करने का निर्देश दिया। दिग्विजय का एक पहलू यह है कि वे हमेशा हिंदू संगठनों को आडे हाथों लेते रहते हैं, जैसे अब यही उनका मिशन हो गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल आदि हमेशा उनके निशाने पर रहते हैं और वे इन दिनों उन्हें तथाकथित हिंदू आतंकवाद के लिए जिम्मेदार भी ठहराते रहते हैं। दूसरी ओर वे सिमी जैसे मुस्लिम संगठन पर हमेशा से उंगली उठाते आ रहे हैं। 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमले में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते के मुखिया हेमंत करकरे की मौत पर उठे सवालों को हवा देते हुए उन्होंने कह दिया था कि करकरे ने उन्हें अपनी मौत से पहले फोन पर बताया था कि उनकी जान को हिंदू समूहों से खतरा है। यह विवाद खूब उछला, बहुत ‘तू-तू, मैं-मैं’ भी हुई; और आखिर में दिग्विजय ने साबित किया कि करकरे ने उन्हें फोन किया था। अब सवाल यह है कि क्या वे सबूतों के आधार पर राजनीति करते हैं या अपने दो टूक बयान देते हैं या फिर यूं ही कुछ भी बोलते चले जाते हैं और विवाद खडे करते हैं? वे कहते हैं कि संघ भारत में कई आतंकवादी हमलों के पीछे जिम्मेदार है और अजमेर धमाके का आरोपी सुनील जोशी इसका सबूत है, जिसकी अब हत्या कर दी गई है; क्योंकि वह संघ के बारे में बहुत कुछ जान गया था। यह दूसरी बात है कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने दिग्विजय पर ही इल्जाम लगा दिया कि सुनील जोशी की हत्या के पीछे उनका हाथ है और मुङो फंसाने के पीछे भी उन्हीं का हाथ है। दूसरी ओर उन पर मुस्लिम समुदाय की तरफदारी करने का आरोप भी लगाया जाता है, हालांकि उन्होंने सिमी को हमेशा अपना निशाना बनाया है और एक बार अपने बयान में कहा है कि बजरंग दल भी सिमी जैसा है। राजनीतिक बयानबाजी के धुरंधर खिलाडी दिग्विजय कांग्रेस के पक्ष से जिस तरह की भूमिका निभा रहे हैं वह शायद कांग्रेस की राजनीति का हिस्सा हो, क्योंकि कांग्रेस ने कभी भी दिग्विजय के किसी भी बयान पर आपित्त नहीं जताई है यानी उसे दिग्विजय की जरूरत है, जो अपने ही खास अंदाज में राजनीति का एक मोर्चा संभाले हुए हैं। सन 2012 में उत्तर प्रदेश में होनेवाले विधानसभा चुनावों का प्रभारी उन्हें ही बनाया गया है यानी दिग्विजय अब मायावती से दो-दो हाथ करने के लिए मैदान में उतरनेवाले हैं।
शकील अहमद:साभार जोश18(मनी डॉट कॉम)

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