सोमवार, 18 जुलाई 2011

आधी आबादी के दर्द का दस्तावेज


महिलाओं से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 35 प्रतिशत भारतीय महिलाएं अपने जीवनसाथी के हाथों शारीरिक हिंसा की शिकार होती हैं जबकि करीब 40 फीसदी पुरु ष और महिलाओं का मानना है कि पुरु ष द्वारा पत्नी को पीटा जाना ‘तर्कसंगत’ है। राजधानी में औपचारिक रूप से जारी ‘प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड वूमन’ रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र की इकाई यूएन वूमन ने चौंकाने वाला यह खुलासा किया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि करीब 10 प्रतिशत महिलाएं यौन हिंसा का शिकार हैं। महिलाओं के बारे में यह सर्वेक्षण साक्षी नामक संगठन ने किया है। रिपोर्ट के मुताबिक सर्वेक्षण की प्रक्रि या में शामिल जिला, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के 109 न्यायाधीशों ने पाया कि 68 फीसदी लोग ऐसा मानते हैं कि उकसाने वाले वस्त्न पहनने की वजह से महिलाएं दुष्कर्म का शिकार बनती हैं। रिपोर्ट में महिलाओं के कामकाज के क्षेत्न में कहा गया है कि महिलाओं की पूर्ण श्रम शिक्त की भागीदारी के अभाव में भारत को अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का औसतन 4.2 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ता है। अफगानिस्तान, जहां औरत होने का मतलब है गुलामी, नर्क, और खौफ की जिंदगी। कांगो, जहां न विकास है और न औरतों के लिए कोई सम्मान। पाकिस्तान, जहां का समाज औरतों को बराबरी का हक नहीं देता। और भारत! जी हां, शर्म कीजिए कि हम इस सूची में हैं। जी हां, औरतों पर होनेवाले अत्याचार के मामले में चौथे नंबर पर हमारा देश अफगानिस्तान, कांगो और पाकिस्तान का मुकाबला कर रहा है। सूची बनाई है महिला अधिकारों के लिए कानूनी सूचना और कानूनी सहायता केंद्र थॉम्सन रॉयटर टस्टला वूमन ने। इसका सर्वेक्षण कहता है कि महिलाओं के लिए भारत चौथे नंबर का सबसे खतरनाक देश है। सर्वे में भारत को महिलाओं के लिए खतरनाक बताने के कारण भी गिनाए गए हैं। भारत में बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है। कई जगहों पर बेटियों को पैदा होने के बाद मौत के घाट उतार दिया जाता है। भारत लड़कियों की तस्करी का सबसे बड़ा अड्डा बन चुका है। भारत में भारी संख्या में लड़कियों को देह व्यापार में धकेल दिया जाता है। लड़कियों के साथ यौन हिंसा गांव से लेकर बड़े शहरों तक आम है। इसमें लड़कियों से छेड़छाड़, बलात्कार और उनकी हत्या तक शामिल है। इतना ही नहीं लड़कियों को परंपरा, धर्म और जाति के नाम पर भी शिकार बनाया जाता है। उनके स्वास्थ्य पर सबसे कम ध्यान दिया जाता है। 2009 में ही गृह सचिव मधुकर गुप्ता ने यह खुलासा किया था कि लड़कियों की तस्करी इस देश के लाखों लोगों का धंधा है। 2009 में ही सीबीआई ने अंदाजा लगाया था कि तकरीबन 30 लाख लड़कियों की तस्करी की गई, जिनमें से 10 फीसदी विदेशों में बेची गईं; जबकि 90 फीसदी लड़कियों को भारत में देह व्यापार में धकेल दिया गया। इसमें से 40 फीसदी नाबालिग और बेहद कम उम्र की थीं। साफ है इस सर्वे रिपोर्ट को आसानी से नहीं खारिज किया जा सकता। भारत को महिलाओं के लिए चौथे नंबर का खतरनाक देश बताने वाला यह सर्वे 213 विशेषज्ञों के बीच हुआ। इन लोगों ने कई मानकों पर हर देश को परखा और इस परख में भारत के लिए सामने आई सबसे बडी शर्म की बात। इस शर्म के लाखों सबूत हैं। देश की आधी आबादी के साथ कैसा व्यवहार हो रहा है इसके करोड़ों सबूत हैं। सिर्फ 2009 में ही महिलाओं के साथ 2 लाख तीन हजार आठ सौ चार आपराधिक वारदातें हुईं। इनमें हत्या, बलात्कार, यौन शौषण, तस्करी जैसे मामले शामिल हैं। लेकिन यह भी आधा सच है। अगर जानकारों की मानें तो महिलाओं के खिलाफ होने वाले आधे अपराध तो थाने तक पहुंचते ही नहीं हैं।

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