गुरुवार, 7 जुलाई 2011

लोभ का मायाजाल


मध्यप्रदेश में आधा दर्जन फर्जी चिटफंड कंपनियां रोज उधार की जिंदगी जीने वाले आमजनों की गाढ़ी कमाई का एक हजार करोड़ ठगकर भूमिगत हो गईं और किसी को भनक तक नहीं लगी। होश तो तब आया जब लोभ-मोह का यह मायाजाल मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के संज्ञान में आया। अब अपनी चमड़ी बचाने के लिए जिम्मेदार प्रशासनिक अमला हरकत में है। ग्वालियर के कलेक्टर 33 फर्जी चिट फंड कंपनियों के इश्तेहार लगाकर आम निवेशकों को सतर्क कर रहे हैं। आनन -फानन में ऐसी 22 कंपनियों से जुड़े 98आरोपियों के खिलाफ मुकदमे कायम किए गए हैं। राज्य के दीगर जिलों के जिलाधिकारियों को चिट्ठी लिखकर अलर्ट रहने के सुझाव दिए गए हैं। शिकायतों का अंबार इस कदर है कि सुनवाई के लिए अलग से काउंटर खोला गया है। अकेले ग्वालियर- चंबल संभाग से ठगी की 13 हजार शिकायतें हैं। सवाल यह है कि क्या ये शिकायतें दो-चार दिन में अचानक पैदा हो गई हैं? सच तो यह है कि इससे पहले इन शिकायतों को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। आमतौर पर ऐसे मामलों में ऐसा ही होता है। व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि ठगी का शिकार शिकायतकर्ता पुलिस,प्रशासन और कंपनी के बीच उलझकर रह जाता है। कमाल तो यह भी है कि करोड़ों की ठग कंपनियों के मालदार संचालकों की गिरफ्तारी के लिए सरकारी तौर पर दो-दो हजार के ईनाम घोषित किए गए हैं। अब लकीर पीटने की इस कवायद के बीच सबसे बड़ा भय ठगराजों के विदेश भाग जाने का है। गहरे सियासी रिश्तों की अपनी तल्खी और सरगर्मी है। आम निवेशक हतप्रभ हैं। अब तक सबसे बड़ी धोखेबाज कंपनी बनकर उभरी पीएसीएल इंडिया लिमिटेड के एक एजेंट ने जबलपुर में ट्रेन से कटकर खुदकुशी कर ली है। ये छोटे-छोटे लोगों की बड़ी-बड़ी मुश्किलें हैं। ऐसी दगाबाजी कोई नई बात नहीं है। सब जानते हैं कि जब शेड्यूल्ड बैंक में आठ-दस फीसदी एफडी दे रहे हैं ,तो कोई चिट फंड कंपनी साढ़े चार साल में जमाधन को आखिर कैसे दो गुना कर सकती है? यह सिर्फ लोभ की विडंबना नहीं है। बदनसीबी इस बात की भी है कि संवेदन शून्यता जिम्मेदार सरकारी तंत्र का स्थाई चरित्र बन चुकी है। यह आर्थिक धोखाधड़ी कितनी गंभीर है, अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाईकोर्ट ने इस तर्क के साथ मामले की जांच सीबीआई को सौंपी है, कि राज्य सरकार प्रकरण की पड़ताल में सक्षम नहीं है। राज्य के पास इतने संसाधन और अधिकार नहीं हैं कि वह देश के दूसरे प्रदेशों में सक्रिय फर्जी चिटफंड कंपनियों के खिलाफ जांच कर सकें। इंसाफ की खातिर यही बेहतर होगा कि जांच सीबीआई से कराई जाए। सीबीआई को इसके लिए तीन माह का समय दिया गया है। इन फर्जी चिट फंड कंपनियों में निवेश नहीं करने की नसीहत के साथ सेबी भी सुप्रीम कोर्ट चली गई है। मध्यप्रदेश के अलावा पांच राज्यों में ऐसे ही फर्जीवाड़े की आशंका है। जानलेवा महंगाई के बीच प्रदेश के लाखों निवेशकों के खून पसीने की इस कमाई पर बेईमानी का कहर पीड़ा दायक है। पेट काटकर पैसे बचाने की मुश्किलों के ऐसे दुखांत का दर्द सिर्फ वही समझ सकता है जिसने इसे जीया है। पैरों तले जमीन नहीं है। अभी नहीं तो कभी सही,सुंदर भविष्य के ऐसे सपने टूटे कांच की तरह किर्चे-किच्रे बिखर चुके हैं।

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