बेलगाम महंगाई के मौजूदा दौर में पेट्रोलियम पदार्थो की दर वृद्धि के एक और झटके के बीच यूपीए सरकार की टैक्स मद में कटौती और अतिरिक्त आर्थिक बोझ स्वयं बर्दाश्त करने का साहसिक फैसला वास्तव में स्वागत योग्य है। देश के कांग्रेस शासित राज्यों में ऐसे ही उपायों को अनिवार्य रूप से अपनाए जाने के निर्देश भी काबिले तारीफ हैं। सर्वाधिक साधुवाद की पात्र तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनज्री हैं, जिन्होंने राज्य की आम जनता के व्यापक हित में रसोई गैस से उपकर वापस लेने के फैसले पर देर नहीं लगाई। यूपीए सरकार के महत्वपूर्ण सहयोगी दल की मुखिया ममता डीजल,पेट्रोल और घरेलू गैस में मूल्य वृद्धि के शुरू से खिलाफ रही हैं। इसी तरह प्रमुख विपक्षी दल भाजपा भी वामदलों के साथ पेट्रोलियम उत्पादों के भाव बढ़ाने के खिलाफ है। सवाल यह है कि मध्यप्रदेश समेत देश के दीगर राज्यों की भाजपा सरकारें क्या आम आदमी को महंगाई की मार से राहत देने के इस संवेदनशील मसले पर ऐसी ही दरियादिली दिखाएंगी? या फिर भाजपा की कथनी और करनी का एक और गहरा फर्क असली चरित्र के रूप में सामने आएगा? प्रदेश के वित्त मंत्री राघव जी पहले ही कह चुके हैं कि अगर केंद्र सरकार पेट्रोलियम पदार्थो पर एक्साइज डय़ूटी घटाती है, तो राज्य सरकार भी ऐसा करने पर विचार कर सकती है। सब जानते हैं कि केंद्र सरकार ने कच्चे तेलों और डीजल पर कस्टम तथा एक्साइज डय़ूटी घटाकर सरकारी खजाने के लिए सालाना 49 हजार करोड़ के बजट संकट की मुसीबत मोल ले ली है। यहां गौर तलब तथ्य यह भी है कि पेट्रोलियम पदार्थो के मद से देश में सर्वाधिक टैक्स वसूलने वाली मध्यप्रदेश सरकार भी अगर ऐसा ही साहसिक कदम उठाती है, तो इससे उसकी माली हैसियत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।आर्थिक मामलों के जानकारों की मानें तो डीजल,केरोसिन और एलपीजी के दामों की हालिया दर वृद्धि से राज्य शासन को टैक्स के जरिए सालाना 265 करोड़ का अतिरिक्त लाभ होगा अगर सरकार अकेले इसी वृद्धि को कर मुक्त करने का नैतिक साहस दिखा दे तो इससे प्रति सिलेंडर पर 39 रुपए और प्रति लीटर डीजल पर 8 रुपए की राहत फौरन मिल सकती है। वैसे भी सरकार को अकेले डीजल से हर साल 28 सौ करोड़ और एलपीजी से 75 करोड़ रुपए की घर बैठे आमदनी होती है। राज्य सरकार इन दोनों मदों से वैट और इंट्री टैक्स के रूप में 32.39 प्रतिशत कर वसूलती है। बेहतर तो यह हो कि सरकार इंट्री टैक्स को भी न्यूतम करके गरीबों की मुश्किलें आसान कर सकती है। देश के ज्यादातर राज्यों में यह कर या तो लागू नहीं है या फिर नहीं के बराबर है। सरकार को यह भी समझना चाहिए कि महंगाई की मार से आम आदमी को निजात अकेले केंद्र का विषय नहीं है। राज्य ऐसे तर्क देकर अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता है। प्रदेश में प्रति लीटर पेट्रोल पर 13 रुपए का टैक्स लग रहा है। प्रदेश में आम आदमी के मासिक खर्चे में10 फीसदी का इजाफा हुआ है। देश की राजधानी दिल्ली के मुकाबले भोपाल में रोजाना 6 रुपए के मान से ज्यादा महंगाई का अनुमान है। अकेले डीजल में वृद्धि से माल भाड़ा बढ़ने के कारण फल और सब्जी जैसी रोजमर्रा की जरूरी खाद्य वस्तुओं में 10 प्रतिशत महंगाई का अतिरिक्त बोझ बढ़ा है। ऐसे में सिर्फ राज्य सरकार से ही राहत की दरकार है।
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