गुरुवार, 23 जून 2011

मानसून: आया उम्मीदों का मौसम


देश में मानसून का आगाज भले ही झमाझम हो। भारतीय किसान भयभीत और बाजार बेचैन है। यह चिंता नाहक नहीं है। अबकि सामान्य से भी 4 फीसदी कमजोर बारिश की भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की भविष्यवाणी असल में खतरे की ही घंटी है। खाद्य वस्तुओं पर महंगाई 7 फीसदी की रफ्तार से हावी है। धान,दलहन और तिलहन जैसी 65 प्रतिशत जरूरी जिंसों की पैदावार इसी मानसून पर निर्भर करती है। अगर सीजन के दौरान मंडियों में इनकी आवक कमजोर पड़ी तो इससे सिर्फ दामों में उछाल ही नहीं आएगा, सरकार के अनुदान बिल भी बढ़ेंगे। आयात की नौबत आई तो पहले से ही महंगाई से आहत आम आदमी पर तो जैसे आफत ही आ जाएगी। केंद्रीय वित्त मंत्री दादा प्रणव मुखर्जी ठीक ही कहते हैं, घबराने की जरूरत नहीं । सरकार का क्या? आदतन महंगाई का ठीकरा मानसून के सिर फोड़कर सरकार तो किनारे हो जाएगी? लेकिन हकीकत तो यही है कि अगर मौसम का मिजाज बिगड़ा तो हालात संभाले नहीं संभलेंगे। मौसम महकमे के अनुमान कहते हैं,इसका सीधा असर यूपी और पंजाब की उपजाऊ बेल्ट की कमर तोड़ सकता है। वस्तुत: मानसून उम्मीदों का मौसम है। कौन नहीं जानता कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और मानसून उसका प्राण। देश में 65 फीसदी कृषि और 80 प्रतिशत आबादी आज भी मानसून की बारिश पर निर्भर है। महंगाई से निजात का नुस्खा भी यही है। कदाचित यही वजह है कि कृषि और खाद्य सुरक्षा के नाजुक मामले में मानसून पर भारत की अति निर्भरता हमेशा चिंता का विषय रही है। भारतीय खेती अगर आज भी मानसूनी जुआ है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? अब बरसात के चौमासे में मात्र सौ दिन बरसात होती है। सच तो यह है कि सरकारी स्तर पर सिंचाई के क्षेत्र में को निवेश को कभी भी प्रोत्साहित नहीं किया गया है। यह जानने के बाद भी कि बिजली उत्पादन, भूजल रिचार्ज, नदियों का पानी भी मानसून पर निर्भर है, कभी भी बारिश के पानी के प्रबंधन के प्रयास नहीं किए गए हैं। देश में कृषि के लिए आज भी महज 40 फीसदी कमांड क्षेत्र ही उपलब्ध है। मानसून पर अति निर्भरता इस कृषि प्रधान देश की विवशता है लेकिन एक विडंबना यह भी है कि मानसून के पूर्वानुमानों के मामले में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और उसके विज्ञानी भी बहुत ज्यादा भरोसे के काबिल नहीं है। हाल ही के 17 अनुमानों में इनकी सिर्फ 5 भविष्यवाणियां ही सच साबित हुई हैं। चालू मानसून सीजन के लिए इसी मौसम महकमे ने अपने शुरूआती अनुमान में सामान्य बारिश का एलान किया था। दो माह बाद अब कमजोर बरसात का अंदाजा है। मौसम की भारतीय भविष्यवाणियां प्राय: उलटी पड़ जाती हैं। इसके विपरीत अमेरिका और ब्रिटेन में लोग इन्हीं भविष्यवाणियों के भरोसे घर से निकलते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो भारत में फिलहाल ऐसा मुमकिन नहीं है। विदेशों में एक या दो क्लाइमेट जोन हैं। वहां पूरे साल मौसम एक सा रहता है। जबकि भारतीय भौगोलिक स्थिति और परिस्थितिकी ऐसी है जो कृषि के लिहाज से देश में कुल 130 क्लाइमेटिक जोन बनाती है। फिर भी सभी जोन में सुपर कंप्यूटर और कलर डॉप्लर राडार लगाकर मौसम विभाग का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। काश, चालू मानसून सीजन के लिए मौसम महकमे का सामान्य से 4 प्रतिशत कम बारिश का पूर्वानुमान एक बार फिर से उलट जाए। बरसात कुछ यूं हो कि खेत हरे हो जाएं और धन-धान्य से भर जाएं खलिहान..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें