गुरुवार, 16 जून 2011

सोनम की मौत पर माया की मातमी सियासत



महज 14 साल की बदनसीब सोनम तो चली गई, लेकिन वह अपने पीछे छोड़ गई है, इंसानियत का कालिख पुता खौफनाक चेहरा..जिस्म और जिंदगी की भूखी हैवानियत का वहशी चेहरा, लेकिन शर्त यह है कि यूपी के एक थाने में पेड़ पर झूलती मासूम की लाश पर अब शर्मसार होने की गुंजाइश नहीं है। अब न आंखें नम होती हैं ,न दिल पसीजता है। दरअसल, आज के इस मौका और मतलब परस्त तेज रफ्तार दौर में अब अपनापन नहीं रहा। खून तो जैसे पानी हो गया है। अलबत्ता, राहगीरों के कदम आज भी ठिठकते हैं। तमाशबीनों की शक्ल में मजमा लगाकर भीड़ खुद ब खुद भीतर से टूटती है और, और.. फिर किर्चे-किर्चे बिखर जाती है। शैतानियत से मुकाबला कैसा? मुंह मोड़कर खिसक लेने के रिवाज हैं,यहां। थाने में एक नाबालिग से रेप और फिर गला दबाकर कर कत्ल के बाद आखिर कुछ कहने को बचता ही कहां है? लेकिन कमाल देखिए, सूबे की सीएम मायावती खामोश नहीं हैं। उन्हें सोनम के इस दुखांत में भी सियासत ही दिखती है। उन्हें मामले की सीबीआई जांच से इंकार नहीं ,मगर डर है कि कहीं इस केस का भी हश्र नोएडा की आरूषि जैसा न हो जाए। अब इतने बड़े सूबे की मालकिन को कौन समझाए कि आरूषि के आगे एक गरीब चौकीदार सोनम की क्या बिसात? दोनों की हैसियत,कैफियत,परिवेश,परिस्थितियां और अपराध की प्रवृत्ति अर्श के आगे फर्श जैसी है। माया की फिक्र जीते जी फांसी पर झुला दी गई फूल सी बच्ची के गुनहगारों को फांसी पर लटकाने में नहीं। वस्तुत: माया का भय तो फकत इतना है, कि अल्पसंख्यकों के मामले में बेहद नाजुक यूपीए सरकार की सीबीआई कहीं इसी बहाने उन पर कोई सियासी फंदा न फंसा दे। सफेदपोशों की सरपरस्त सियासत के असली चरित्र का यह कोई नया चेहरा नहीं है। माया को इस मसले में राष्ट्रीय मानवाधिकार के दखल पर भी सख्त एतराज है। उन्हें इसमें भी केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार की राजनीतिक चाल दिखती है। अब माया को यह भी कौन बताए कि ऐसे संगीन और संवेदनशील मानवीय मामलों को स्वयं संज्ञान में लेना राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नैतिक कर्तव्य भी है और संवैधानिक अधिकार भी। वस्तुत: यही मानवीय धर्म भी है। बहरहाल, सोनम के सवाल पर यूपी की सियासी सरगर्मियां उफान पर हैं। सोनम के शव के दो पोस्टमार्टम के बाद भी मुद्दों की भूखी कांग्रेस का पेट अभी नहीं भरा है। उसने तीसरे पोस्टमार्टम की मांग उठाकर राजनीतिक रोटियां सेंकनी शुरू कर दी हैं। भाजपा सीबीआई जांच की जिद पर अड़ी है। मायावती सरकार को लगता है कि उसने घटना के पांच दिन बाद एसपी समेत पूरे थाने को सस्पेंड करके अपने राज्य धर्म का निर्वाह कर दिया है। मामला शांत होते ही चुपचाप बहाली देकर सरकार अपने प्रशासनिक धर्म का भी निर्वाह कर लेगी। ऐसे में अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो देश में हर 60 मिनट में बलात्कार की दो वारदातों के सच को स्वीकार करता है तो हैरानी कैसी? आश्चर्य इस बात पर भी नहीं कि महिला अपराधों के मामले में भारत दुनिया का चौथा सबसे खतरनाक देश है। 2009 की स्थिति में देश में 10 करोड़ लोग मानव तस्करी में शामिल थे। 30 लाख वेश्याएं थीं, जिनमें से 40 प्रतिशत बच्चे थे।

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