भारत का आधारभूत सामाजिक ढांचा आर्थिक मोर्चे पर इतना असंतुलित, अराजक,अस्थिर और जजर्र भी हो सकता है। सहसा,यकीन नहीं होता । दुनिया के ताकतवर देशों में कथित तौर पर तकरीबन शुमार हो चुके इस देश की असली तस्वीर तब तक नहीं दिखेगी जब तक कि हम हिंदुस्तान के अंदर मौजूद मुट्ठी भर इंडिया और भव्य भारत को अलग-अलग, मगर एक साथ नहीं देखेंगे। इंडिया में अमीर अर्श पर हैं तो भारत के गरीब फर्श पर। आर्थिक उदारीकरण के इस दौर में वैश्विक मंच पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए हमारी इससे बड़ी दुखभरी शर्मनाक खुशखबरी और क्या हो सकती है कि दक्षिण एशिया में हम चीन के मुकाबले 4 फीसदी से भी ज्यादा बड़े उभरते हुए बाजार हैं। एक ऐसा बाजार जहां मूल्यों के अवमूल्यन की शर्त पर हर चीज बिकाऊ है। जहां नैतिक मूल्यों का भले ही कोई मोल न हो लेकिन अनैतिकता हर कीमत पर अनमोल है। मनमानी मुनाफे की सौदेबाजी का एक तमाशा यह भी है जहां इंडिया दुनिया में सबसे तेजी के साथ अमीर हो रहा चौथा सबसे बड़ा देश है ,वहीं हिंदुस्तान में एक ऐसा दरिद्र और निर्धन भारत भी है, जहां का हर चौथा इंसान भूखा और भिखारी है। भारत में 6 करोड़ से भी ज्यादा ऐसे बदनसीब हैं जिन्हें, आज भी दो जून की रोटी नसीब नहीं हैं। अतुल्य भारत की यह स्वेत-श्याम तस्वीर वस्तुत: मल्टीकलर इंडिया की शान में मखमली जाजम पर टाट के किसी टुकड़े के मानिंद है। यही वजह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा के इंडिया आगमन का अवसर हो या फिर कॉमन वेल्थ गेम का आयोजन राजधानी दिल्ली से भारतीय भिखारी ढूढ-ढूढ कर खदेड़े जाते हैं। खासकर 60 हजार से भी ज्यादा वो स्ट्रीट चिल्ड्रेन जो हमें हमारी औकात बताते हैं,पुलिसिया बूटों की खुराक पाते हैं। हकीकत तो यही है कि दौलत में अपना सिक्का चलाने के बाद भी हम गरीबी,भुखमरी,बेकारी, बीमारी, असुरक्षा और अशिक्षा के बीच जमीनी स्तर पर थके-हारे और टूटे हुए हैं। भीतर से खोखले भारत की इंडिया शाइनिंग और फील्ड गुड मनबहलाने का बेहतर बहाना हो सकते हैं मगर हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि दुनिया के दिखाने की होड़ में हम आखिर कब तक हकीकत से मुंह चुराते रहेंगे? दुनिया के आइने पर तरक्की के हमारे ये तमाम तमगे दरअसल बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सुनियोजित साजिश का नतीजा हैं। यह भी समझना होगा कि दिखावे की इस दुनिया में हम सबसे पहले अपने भीतर देखने की कोशिश करें । इन प्रायोजित अनुसंधानों के लिए खूबसूरत आंकड़े बनाने की कवायद के बजाय अगर हमारी सरकारें आम आदमी को सड़क, बिजली,पानी,शिक्षा और सुंदर स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की गारंटी दे सकें तो उनका इस देश पर बड़ा उपकार होगा। भय-भूख और भ्रष्टाचार मुक्त भारत ही हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। दुनिया हमें कुछ भी समङो हमारी घरेलू स्थिति बड़ी नाजुक है। ये वही सामाजिक शोषण और आर्थिक असमानताएं हैं जो देश के अंदर नक्सलवाद की जड़ों को खाद पानी दे रही हैं। अत: आवश्यक है कि वक्त रहते हमारी सरकारों को आंकड़ों की बाजीगरी से बाज आना चाहिए । अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब हम दाना-पानी के लिए जानलेवा खूनी संघर्षो से जूझ रहे होंगे।
very true the home politics is in dire state...
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