शनिवार, 25 जून 2011

पेट्रोलियम कंपनियों की सरकार


पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी कुछ भी कहें,लेकिन यूपीए सरकार बगैर कुछ सोचे-समङो एक बार फिर से अपनी चहेती पेट्रोलियम कंपनियों के सामने बिछ गई है। पेट्रोलियम पदार्थो के लिए गठित अधिकार प्राप्त मंत्री समूह (ईजीओएम) ने यह फैसला लेने से पहले आम आदमी के हितों की फिक्र नहीं की है। असलियत तो यह है कि सरकार की सारी चिंता तेल विपणन कंपनियों पर ही केंद्रित है। उलटे आम आदमी के हितों के सवाल पर सरकार इसे मामूली इजाफा बताकर आग में घी डालने का काम कर रही है। सरकारी गणित के मुताबिक इससे पेट्रोलियम कंपनियों को चालू माली साल के दौरान 21 हजार करोड़ की राहत मिलेगी मगर बावजूद इसके लागत से कम कीमत पर उत्पाद बेचने के कारण एक लाख 20 हजार करोड़ का नुकसान बराबर बना रहेगा। यानि घाटे की आड़ में सरकार अभी और दर वृद्धि की गुुंजाइश भी बना कर चल रही है। एक और सरकारी दावे पर यकीन करें तो पेट्रो पदार्थो की कीमतों को काबू में रखने के लिए कच्चे तेल पर लगने वाले पांच फीसदी सीमा शुल्क को खत्म कर दिया गया है। डीजल पर सीमा शुल्क 7.5 प्रतिशत से घटाकर 2.5 कर दिया गया है। इसके अलावा उत्पाद शुल्क को भी 4.60 रु पए प्रति लीटर से घटाकर दो रु पए कर दिया गया है। यानि सरकार यह यकीन दिलाने की कोशिश कर रही है कि उसे इन शुल्कों में कटौती के कारण वित्तीय वर्ष के दौरान 49 हजार करोड़ का राजस्व घाटा होगा। इससे सीमा शुल्क में 26 हजार करोड़ और उत्पाद शुल्क में23 हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान है। सरकार अब इसी मामले में राज्य सरकारों से भी ऐसी उम्मीद रखती है। अपने बचाव में सरकार ने साफ किया है कि डीजल,केरोसिन और रसोई गैस के मूल्यों में बढ़ोत्तरी कोई राजनैतिक फैसला नहीं है वरन यह एक आर्थिक मामला है, लेकिन पेट्रोलियम कंपनियों पर मेहरबान यूपीए सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि ये सभी पेट्रोलियम पदार्थ आम आदमी के रोजाना उपभोग से जुड़े हुए हैं और अप्रकट रूप से ये सीधे खाद्य वस्तुओं को प्रभावित कर महंगाई को फुटबाल की तरह उछाल देते हैं। जाहिर है सरकार की सिर फुटौव्वल तय है। इस मामले में सरकार के प्रमुख सहयोगी दल तृणमूल, वामदलऔर मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी लामबंद हैं। सवाल यह भी है कि अगर टैक्स घटाने के बाद भी तेल कंपनियों को डीजल पर प्रति लीटर18 रु पए ,केरोसिन पर 29 रु पए और पेट्रोल पर प्रति लीटर 1.99 रु पए का नुकसान हो रहा है तो पाकिस्तान जैसे दुनिया के दीगर देशों में आम उपभोक्ताओं के लिए पेट्रोलियम के यही पदार्थ 30 से 50 फीसदी सस्ती कीमतों पर किस जादुई करामात से उपलब्ध हैं ? यह तब हो रहा है, जब दुनिया के कमोवेश सारे देशों का एक ही तेल बाजार है और आपूर्ति की शर्ते भी समान हैं। सरकार अब यह कह कर अपना पल्ला झाड़ रही है कि पेट्रोलियम कंपनियां तेल के मूल्य स्वयं तय करती हैं, और इसमें सरकार का कोई जोर नहीं है ,लेकिन सरकार यह भूल रही है कि उसने पेट्रोलियम पदार्थो के दामों को नियंत्रण मुक्त करने के दौरान शून्य शुल्क का वादा किया था । सरकार की वादा खिलाफी आज अगर आम आदमी के लिए आफत बन गई है तो कल स्वयं के लिए फांसी का फंदा भी बनेगी।

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