यह तो होना ही था। कश्मीर मसले पर भारत के खिलाफ प्रधान मंत्री यूसुफ रजा गिलानी के जहर बुङो दो टूक बयान ,दोनों देशों के बीच चल रही विदेश सचिव स्तरीय महत्वपूर्ण आखिरी बैठक के नतीजों का भविष्य पहले ही तय कर चुके थे। दोनों देशों के बीच समग्र वार्ता के लिहाज से यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण थी ,क्योंकि इसी आधार पर अगले माह होने जा रही भारत-पाक के विदेश मंत्रियों की बैठक का एजेंडा तय होना था। बैठक के ठीक एक दिन पहले पाक अधिकृत कश्मीर पहुंच कर गिलानी का फिर वही विलाप कि कश्मीर मुद्दा पाकिस्तान की जीवन रेखा है और इसी बीच विदेश मंत्री हिना रब्बानी खान की यह तल्खी कि भारत-पाक के बीच सिवाय कश्मीर के कोई और मसला ही नहीं है। इस बात को और भी पुख्ता करता है कि पाकिस्तान अंतत: कुत्ते की ही दुम है। दरअसल ,भारत के साथ दोस्ताने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। लिहाजा भारत को जहां बातचीत के जरिए हर मसले का समाधान दिखता है , वहीं पाक को बातचीत की नजर से किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं दिखती है। वस्तुत: दोनों पक्षों के बीच परस्पर विश्वास की बहाली, मैत्री पूर्ण संबधों का विकास और शांति सुरक्षा की गारंटी बुनियादी मसले हैं। इन्हीं बाधाओं को दूर करने के इरादे से भारत ने मुंबई बम ब्लास्ट के बाद समग्र बातचीत के रास्ते खोले थे। पिछले साल थिंपू में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के साथ शुरू हुए सकारात्मक बातचीत के दौर से एक बार फिर से यह उम्मीद बंधी थी कि शायद पाकिस्तान अब अपनी हरकतों से बाज आ जाएगा लेकिन लगता नहीं कि अपनी जमीन से भारत के खिलाफ आतंकी अभियान और कश्मीर पर अनाधिकृत स्वामित्व सबसे बड़ा झगड़ा है। उधर,पाकिस्तानी हुक्मरानों को लगता है कि वे अपनी भारत विरोधी नीतियों से ही राजनैतिक रोटियां सेंक कर सत्ता का सुख भोग सकते हैं। यही वजह है कि भारत के मामले में पाकिस्तानी नेतृत्व परंपरागत तौर पर सदैव यथास्थितिवादी रहा है। वहां वोट की राजनीति के लिए भारत का हिंसक और आक्रामक विरोध सियासतदारों का अहम एजेंडा है। पाकिस्तान में कश्मीर के राजनीतिकरण से आम पाकिस्तानी की स्थाई तौर पर यह धारणा बन गई है कि भारत उनका दुश्मन नंबर वन है। दरअसल नापाक इरादों की बदौलत अपने ही पापों से पस्त पाकिस्तान से सिर्फ इतनी ही उम्मीद की जा सकती है? बेहतर हो कि अस्तित्व के लिए अपने आप से ही लड़ रहा यह विफल राष्ट्र कश्मीर की ओर आंख उठाने से पहले अपना ही गिरेबान देखे। पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि इस भीषण संकट से उबरने के लिए उसे क्रांतिकारी बदलाव करने होंगे, जिसकी हाल फिलहाल गुंजाइश नहीं दिखती है। सेना के आतंकी आचरण,आतंकवादियों की समनांतर सरकार और कठमुल्लेपन पर केंद्रित रूढ़वादी धार्मिक धारणाओं के शिकार पाकिस्तान को यह भी समझना चाहिए कि अगर जिंदा रहना है तो उसे भारत का अनुसरण करना ही होगा। इसके विपरीत पड़ोसी पाकिस्तान के मामले में भारत की ओर से जरूरत समझदारी और सतर्कता के साथ संयमित रहने की है। आशय यह कि पाकिस्तान के साथ भारत की गजब की कूटनीति ही वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है।
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