शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर राजधानी में मां नर्मदा के अवतरण का यह भी एक इत्तफाक ही है कि उमा का एक सियासी संकल्प पूरे 8 साल बाद अंतत: शिव सरकार में फलीभूत होने को है। जाहिर है, रामनामी भाजपा सरकार राजधानी में पूजा के थाल सजाकर नमामि देवि नर्मदे का स्तुति गान को आतुर है। हो भी क्यों न,12 वर्ष पहले तबके प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने एक चुनावी सभा के दौरान नर्मदा जल भोपाल लाने के सियासी संकल्प का एलान किया था । 2003 के विधान सभा चुनाव के दौरान यह संकल्प भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल था। भाजपा ही नहीं समय-समय पर कांग्रेस भी इस मुद्दे पर राजनैतिक परचम फहराती रही है, लेकिन सवाल यह है कि सियासतदारों के इन भागरथी प्रयासों का जनहित से आखिर कितना नाता है ? बूंद-बूंद जल संकट को मोहताज झीलों की नगरी भोपाल की एक बड़ी आबादी को भरमाने के लिए कांग्रेस सरकार ने करोड़ों के बजटवाली कोलार पेयजल परियोजना पेश की थी । अब नर्मदा जल से प्यास बुझाने के दावे हैं। तकरीबन 339 सौ करोड़ के भारी भरकम बजटवाली यह परियोजना कोलार की तरह नाकाम नहीं होगी,आखिर इसकी क्या गारंटी है? क्या यह सच नहीं कि राजधानी के भूमिगत जल स्त्रोत आज भी अपार जलराशि से लबालब हैं,जरूरत सिर्फ जल भंडारण ,संरक्षण और उसके वितरण का प्रबंधन किए जाने की है। विशेषज्ञ, कभी भी नर्मदा जल को भोपाल लाने के पक्ष में नहीं रहे हैं। जल संकट के स्थाई समाधान की यह कवायद वस्तुत: लाखों-लाख आस्थाओं की प्रतीक पुण्य सलिला नर्मदा के राजनीतिकरण की रही है। वर्ना, आज मध्यप्रदेश में ही राज्य की यह जीवन रेखा स्वयं जिंदगी और मौत से जूझ रही है। प्रदेश के 16 जिलों में प्राणलेवा प्रदूषण से कलप रही नर्मदा की इस हालत के लिए कोई और नहीं इसी भाजपा सरकार के अधीन नगरीय निकायों के लगभग 102 से भी ज्यादा छोटे-बड़े नाले जिम्मेदार हैं ,लेकिन सरकारी अमला नर्मदा के आसपास अभी तक सीवरेज सिस्टम तक नहीं बना पाया है। सरकारी अनदेखी का आलम तो यह है कि जबलपुर में 12,होशंगाबाद में 29 और मंडला जैसे बड़े शहर में 16 गंदे नाले अफसरशाही की नाक के नीचे नर्मदा को मैला कर रहे हैं। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तीन साल साल के बायोमैपिंग सव्रे के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है कि मध्यप्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा का जल पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं रह गया है। जलस्तर सी ग्रेड तक पहुंच गया है। गंगा की तरह नर्मदा में जल को शुद्ध रखने के स्वाभाविक प्राकृतिक तत्व नहीं होते हैं। भारतीय मानक संस्थान के मुताबिक जल मे पीएच वैल्यू 6.5 से 8.5 तक होनी चाहिए ,लेकिन और तो और नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में ही पीएच मान 9.0 के स्तर से ऊपर है। नर्मदा की जयकार और उसकी महिमा मंडित करने से ज्यादा जरूरत उसे प्रदूषण से मुक्त करने की है। आस्था के दिखावटी कर्मकांडों से उसे और प्रदूषित करने की जरूरत नहीं है। जल संकट की आड़ में वोट और नोट के पुण्य लाभ की प्रत्याशा में नर्मदा की दुर्गति का खेल अब खत्म होना चाहिए। अन्यथा यह पाप बहुत ही महंगा पड़ेगा । क्योंकि, अगर मां रूठी तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। कभी नहीं..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें