तेज धारदार हथियार के साथ एक युवक बाकयदा राजधानी भोपाल के बैरसिया थाने में आता है और लॉकप में बतौर हिरासत बंद एक नाबालिग के अपहरण और उससे ज्यादती के आरोपी पर जानलेवा हमला करके आराम से चला जाता है। इस मामले में पुलिस न केवल तमाशबीन बनी रहती है,अपितु वह बराबर की भागीदार भी होती है। इसी बीच मरणासन्न बंदी पर पुलिस आत्महत्या की कोशिश का मुकदमा ठोंक देती है। मध्यप्रदेश के न्यायिक सेवा के इतिहास में संभवत:अपने किस्म का यह पहला मामला है,जब अदालत ने ऐसे किसी प्रकरण को स्वयं संज्ञान में लेकर किसी विचाराधीन कैदी की हत्या की कोशिश के इल्जाम में पूरे थाने के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 के तहत मुकदमा कायम किए जाने के आदेश दिए हैं..यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के निघासन थाने में 14 साल की एक नाबालिग के साथ मनमानी के बाद उसकी गला दबा कर हत्या कर दी जाती है और हत्या को आत्महत्या की शक्ल देने के लिए मासूम की लाश थाना परिसर में ही पेड़ पर फांसी में लटका दी जाती है..मुंबई से लगे ग्रामीण इलाके की एक खेतिहर मजदूर महिला के सामने ही 6 वहशी दरिंदे पहले उसके पति की हत्या कर देते हैं और फिर गैंग रेप करते हैं। फरियाद लेकर थाने पहुंची पीड़िता के साथ पुलिस भी बदसलूकी करती है और उसके पति की हत्या को आत्महत्या में बदल कर मुकदमा कायम कर लेती है..कल्याण की एक कोर्ट में पेशी में आए दो चोर अदालत को बताते हैं कि लॉकप में पुलिस ने किस तरह से उन दोनों को परस्पर समलैंगिक संबंध बनाने के लिए मजबूर कर दिया..सवाल यह है कि राष्ट्र भक्ति और जनसेवा का स्वांग रचने वाली पुलिस के इस अराजक राज में आखिर कानून की हैसियत क्या है? अगर यही कानून का राज है तो फिर जंगलराज की परिभाषा क्या है? ब्रिटिशकालीन संस्कृति और संस्कारों में पली-बढ़ी हवशी और हिंसक पुलिस अगर आजादी के 6 दशक बाद रत्ती भर भी संवेदनशील और मानवीय नहीं हो पाई है, तो इसके प्रति आखिर जवाबदेही किसकी है? असल में इस देश के अंदर साजिशन पुलिस सुधारों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया। वस्तुत: सत्ता की शक्ति पुलिस, सियासतदारों से ही पोषित,संचालित और नियंत्रित है। शक्ति के प्र्दशन में सत्ता प्राय: पुलिस को अचूक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है। हाल ही में शांतिपूर्ण सत्याग्रह पर दिल्ली पुलिस की दरिंदगी ,इसी तथ्य की ताजा मिसाल है। कहना न होगा कि पुलिस अमले में जमीनी स्तर पर बेइंतहा तनाव और अवसाद उसकी कार्यप्रणाली का अनिवार्य हिस्सा है। जो उसे अधिकतम क्रूर,आक्रामक, निरंकुश और काफी हद तक नपुंसक बनाता है। नेशनल क्र ाइम रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो उसे पूरे देश में पुलिस के खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायतें एमपी से मिलीं। यूपी दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर है। एमपी का हर पांचवां पुलिसकर्मी दागी है। प्रदेश पुलिस से जुड़ा एक सनसनीखेज पहलू यह भी है कि डय़ूटी के दौरान जिंदगी से हार मानकर आत्महत्या करने वाले पुलिसकर्मियों के मामले में भी मध्यप्रदेश, देश में सबसे आगे है। नौकरी के दौरान देश में कुल 139 पुलिसवालों ने खुदकुशी की जिनमें से सबसे ज्यादा 31 पुलिसवाले मध्यप्रदेश के थे।
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